
अटारी बार्डर (अमृतसर) : अमृतसर देश के पश्चिमी छोर का फ्रंट लाइन है । दूसरे शब्दों में कहें तो यह सीमांत प्रदेश पंजाब का यह जिला पाकिस्तान की सरहद से लगा है। पाकिस्तान जाने के लिए एक मात्र से रास्ता अमृतसर से हो कर गुजरता है। इसे अंतरराष्ट्रीय सड़क मार्ग भी कहा जाता है।
गुरुओं की धरती कहे जाने वाले अमृतसर में सिख धर्म का प्रमुख केंद्र स्वर्ण मंदिर और चार तख्तों में से एक प्रमुख तख्त श्री अकालतख्त साहिब अमृतसर में ही है।
यही नहीं यहां शहीदों के रक्त से सिंचित जलियांवाला बाग और पार्टिशन म्यूजियम भी इसी शहर में हैं। इसके अलावा वार मेमोरियल सहित अन्य मंदिर और गुरुद्वारे हैं जिन्हें देखने के लिए श्रद्धालु और पर्यटक वर्षभर हजारों की संख्या में आते-जाते रहते हैं। लेकिन इस सबसे अलग भारत-पाकिस्तान की सीमा पर स्थित है एक और पर्यटन स्थल है, जिसे अटारी बार्डर कहा जाता है। गुरु नगरी आने वाला रह पर्यटक यहां जाना चाहता है।
क्या है रिट्रीट सेरेमनी
रोजाना सूर्यास्त से पहले वाघा बॉर्डर पर रिट्रीट सेरेमनी होती है। इस सेरेमनी में भारत के सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान के पाक रेंजर्स के जवान शामिल होते हैं। दोनों देशों के जवान सूरज ढलने से पहले अपने-अपने देश के ध्वज को परेड के साथ सलामी देते हुए उतारते हैं। इस दौराने दोनों देशों जवानों की भावभंगिमाएं देखने योग्य होती हैं। जिन्हे देखने के लिए दोनों देशों की सीमाओं में काफी संख्या में पर्यटक आते हैं।

परेड के दौरान यहां बजने वाले देश भक्ति के तराने लोगों को इस कदर प्रेरित करते हैं कि देश प्रेम का जज्बा हिलोरे लेने लगता है। कभी-कभी तो स्थित ऐसी बनती है कि देश-विदेश से आने आने पर्यटकों को कंट्रोल करना बीएसएफ के जवानों के लिए मुश्किल हो जाता है।
सीमा दोनो तरफ (भारत-पाकिस्तान) की दर्शक दिर्घा में बैठे लोग अपने-अपने देशों के जिंदाबाद के नारे लगाते हैं। सन् 1965 से शुरू हुई सेरेमनी भारत-पाकिस्तान की तल्खी के बावजूद कभी बंद नहीं हुई। अमृतसर के अलावा पंजाब में दो और जगहों पर रिट्रीट सेरेमनी होती है। वह है फाजिल्का और फीरोजपुर । हलांकि इन जगहों पर कम ही पर्यटक पहुंच पाते हैं।
जाने अटारी बार्डर और यहां से जुड़ी कुछ खास बातें
अटारी वाघा बॉर्डर पर आज जहां बीएसएफ और पाक रेंजर्स की रिट्रीट सेरेमनी देखने रोजाना हजारों लोग पहुंचते हैं। वहां 68 साल पहले (1947) ऐसा कुछ भी नहीं था। 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि को जब देश का विभाजन हुआ तो भारत का एक हिस्सा पाकिस्तान के रूप में अलग हो गया और खिंच गई लकीर। इस लकीर को रेडक्लिफ लाइन भी कहते हैं।
सीमा पर बसे दो गांव अटारी भारत का और उससे सटा गांव वाघा पाकिस्तान का हिस्सा हो गए। यहां से गुजरने वाली ग्रांट ट्रंक रोड पर निशानदेही कर दी गई और पाकिस्तान ने अपनी तरफ बांस का पोल लगा अपना तथा भारत ने अपनी तरफ अपना झंडा लगा दिया। इसके अलावा जगह-जगह खाली ड्रम रख कर निशानदेही चिह्नित की गई। एक किनारे पर छोटा सा गेट लगाया गया और दोनों देशों के झंडों को बड़े खंभे पर लगा दिया गया। इस दौरान किसी को भी दोनों तरफ आने-जाने वालों से पूछताछ की जाती थी।
बार्डर पर 1958 में बनाई गई पुलिस चौकी

पहली बार भारत पाकिस्तान बार्डर पर 1958 में एक छोटी-सी पुलिस चौकी स्थापित की गई जो आज भी मौजूद है। यहां पर पुलिस हर आने-जाने वाले से पूछताछ करती थी। सन् 1965 में बीएसएफ के स्थापना के साथ ही सरहद की रखवाली की जिम्मेदारी इनको सौंप दी गई और रिट्रीट का सिलसिला शुरू किया गया।
आतंकवाद के दौर में बार्डर पर लगाई फेंसिंग
1990 के दशक में गेट को और बड़ा किया गया और 1998 में पंजाब में आतंकवाद के फैलने के बाद पूरी बॉर्डर पर फेंसिंग लगा दी गई। 2001 में यहां पर दर्शक गैलरी बनाई गई जहां पर 15 से 20 हजार लोग रिट्रीट देखते हैं। फिलहाल साल 2015 में इस गैलरी का दोबारा विस्तार किया जा रहा है।
हाईलाइटर्स

अटारी-वाघा बॉर्डर पर १९४९ में छोटा गेट लगाया गया।
अटारी-वाघा बॉर्डर पर १९५८ में पुलिस तैनात की गई।
अटारी-वाघा बॉर्डर पर २००१ में दर्शक गैलरी बनाई गई जहां पर २० से २५ हजार लोग रिट्रीट देखते हैं। रिट्रीट सेरेमनी ४५ मिनट तक चलती है।
रिट्रीट सेरेमनी देखने के लिए अटारी बार्डर पर रोज हजारों लोग पहुंचते हैं ।
अटारी- वाघा बॉर्डर पर बीएसएफ और पाक रेंजर्स के जवान मार्च करते हैं।
परेड में सीमा सुरक्षाबल की महिला जवानों को शामिल किया गया है।
परेड में शामिल होने वाले जवानों की लंबाई छह फुट या इससे से अधिक होती है। जवानों की मूछ व केस सज्जा में आदि के लिए अलग से भत्ता दिया जाता है।
सिर पर तुर्रेदार कलगी वाली पगड़ी, जवानों रौबदार चेहरे, परेड के दौरान दोनों देशों के जवानों की भावभंगिमाएं ऐसी की मानो जवान अब आपस में गुत्थमगुत्था हो जाएं। और यहां लहराते दोनों देशों के राष्ट्र ध्वज दर्शकों में खास जोश और जज्बा पैदा करते हैं।
सर्दी और गर्मी में बदलता है समय
यदि आप अटारी बॉर्डर पर रिट्रीट सेरेमनी सही समय पर देखना चाहते हैं तो तीन बजे से पहले पहुंचना होगा। ऐसा इसलिए कि यहां पर पहुंचने के बाद सुरक्षा जांच, बैग या सामान जमा करना और सीट तक पहुंचने में समय लगता है। बता दें कि गर्मियों में रिट्रीट सेरेमनी का समय 5 बजकर 15 मिनट और सर्दियों में 4 बजकर 15 मिनट है। यहां होने वाली रिट्रीट सेरेमनी ४५ मिनट तक चलती है। हालांकि समय कोरोना की वजह से दोनों बार डंपर आम लोगों के लिए रिट्रीट सेरेमनी बंद है। अटारी-वाघा बार्डर सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक खुला रहता है।
सेरेमनी देखते हुए मारे गए थे ६० लोग
दो नवंबर २०१४ को, वाघा-अटारी सीमा के पाकिस्तान की ओर आत्मघाती हमले में लगभग ६० लोग मारे गए थे और कम से कम ११० लोग घायल हो गए थे। १८ से २० वर्षीय हमलावर ने वाघा-अटारी सीमा समारोह समाप्त होने के ठीक बाद शाम को क्रॉसिंग पॉइंट से अपने 500 मीटर (१६०० फीट) में 5 किलो (११ पाउंड)
विस्फोटक विस्फोट किया।
फिरोजपुर और फाजिल्का में भी देखें सेरेमनी

आम तौर पर लोग यही जानते हैं रिट्रीट सेरेमनी अमृतसर के अटारी बार्डर पर ही होती है। लेकिन ऐसा नहीं है। यह सेरेमनी फीरोजपुर और फाजिल्का बार्डर पर भी होती है। यहां पर भारतीय चेक पोस्ट भारतीय जीरो लाइन से लगभग १00 फीट और पाक से ६00 फीट की दूरी पर है। पाकिस्तान की तरफ की चेक पोस्ट का नाम गंडा सिंह वाला पोस्ट है। १५ फीट की दूरी पर लाइन के दोनों ओर भारत-पाक राष्ट्रीय ध्वज दिन के समय फहराते हैं।
बता दें कि १९७० तक इस चेक पोस्ट पर कोई संयुक्त परेड और रिट्रीट सेरेमनी नहीं होती थी। लेकिन, एक शाम महानिरीक्षक बीएसएफ, अश्विनी कुमार शर्मा ने दोनों अधिकारियों को संयुक्त रिट्रीट समारोह आयोजित करने का आह्वान किया और तब से यह परंपरा बन गई जो आज भी जारी है। बार्डर सिक्योरिटी फोर्स की ओर से यहां करीब दो हजार लोगों के दर्शकदिर्घा में बैठने की व्यवस्था की गई है।
इस चेक पोस्ट से बिल्कुल करीब से पाकिस्तान के लोगों को देखा जा सकता है। सन 1971 से पहले फिरोजपुर से भी भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार होता था। लेकिन, 71 की जंग में पुल, सड़क और रेल मार्ग को काफी नुकसान हुआ था, तबसे इस क्षेत्र भारत-पाक के बीच सड़क मार्ग बंद कर दिया गया।
यही पर भगत सिंह और राजगुरु के स्मारक
यही नहीं भारत की सीमा में सिर्फ एक किमी की दूरी पर शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के स्मारक हैं। उल्लेखनीय है कि 1962 तक , यह क्षेत्र पाकिस्तान के पास रहा और उन्होंने भारत के इन महान शहीदों की याद में किसी भी स्मारक को बनाने के लिए बहुत कम देखभाल की, जिन्होंने दोनों देशों की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
बदले में पाकिस्तान को दिया था 12 गांव

बता दें कि यह स्थान सन 1962 तक पाकिस्तान में था। जब भारत ने पाकिस्तान को हेड सुलेमंकी (फाजिल्का) के पास 12 गांव दे कर बदले में हुसैनिवाला स्थित यह शहीदी स्थल की जमीन प्राप्त की थी। लेकिन विडंबना यह रही कि 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान, इन बहुत से शहीदों की प्रतिमाओं को पाकिस्तान की सेना ने हटा दिया था और आज तक वापस नहीं किया।
फाजिल्का का सादकी पोस्ट पर भी होती है परेड
अमृतसर के अटारी, फिरोजपुर के हुसैनिवाला के अतिरिक्त फाजिल्का जिले में सादकी तीसरी संयुक्त चेक पोस्ट है। यहां पर भी सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तान रेंजर्स की ओर से हर शाम रिट्रीट समारोह किया जाता है। यहां पर भी करीब 1500 से 2000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। बता दें कि सादकी बॉर्डर पोस्ट नेशनल हाईवे से 10 और फाजिल्का से 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कैसे पहुंचे
अमृतसर और फिरोजपुर तक देश के कोने-कोने से रेल मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। अमृतसर, जालंधर और लुधियाना से भी बस सर्विस की उत्तम व्यवस्था है। फिरोजपुर और फाजिल्का का निकटतम हवाई अड्डा बठिंडा, लुधियाना और अंतराष्ट्रिय हवाई अड्डा अमृतसर है।