सुखवीर मोटू
जी हां मेरी पत्रकारिता में मेरी पहचान है तो सिर्फ इसीलिए कि मैं समाचारों के साथ कभी किसी तरह का समझौता नहीं करता। बात शायद अक्टूबर 2011 की है। मेरे पास बाढड़ा क्षेत्र के एक गांव से मेरी बुआ की बेटी के पति का फोन आया। उनके खिलाफ बाढड़ा थाने में छेड़छाड़ और मारपीट का केस दर्ज हुआ था। हालांकि उस फोन से पहले मेरी उनसे कभी बात भी नहीं हुई थी। जब मैंने कॉल रिसीव की तो उन्होंने अपना परिचय दिया तो मैंने कहा कि हां अब समझ में आ गया आप कौन हो। इसके बाद उन्होंने कहा कि मेरे खिलाफ इस तरह का एक केस बाढड़ा थाने में दर्ज हुआ है, इसलिए आपसे निवेदन है कि आप यह समाचार प्रकाशित ना करें।
मैंने कहा कि इस बारे में आपको बाढड़ा के पत्रकार से बात करनी चाहिए थी। तब उन्होंने कहा कि उक्त पत्रकार ने यह कह दिया कि मैं तो यह समाचार रोक लूंगा, लेकिन मेरे रोकने से यह समाचार नहीं रूकने वाला। इसलिए वह अगर मुझसे संपर्क करे तो उस समाचार को रोका जा सकता है। इस पर मैंने उस रिश्तेदार से कहा कि फिर तो आपने मुझे इस समाचार की जानकारी देकर बड़ा गलत किया।
मैंने उनसे कहा कि हालांकि यह समाचार मेरे संज्ञान में नहीं था, लेकिन अब आपने ला दिया तो इसको मैं जरूर प्रकाशित करूंगा। इस पर उन्होंने कहा कि आप हमारे करीबी रिश्तेदार हो और आप ही यह बात कह रहे हो तो हमारा क्या होगा। मैंने कहा कि रिश्तेदार आप अपने दिल से बताओ कि अगर मैं इस समाचार को प्रकाशित नहीं करूंगा ताे क्या आपके खिलाफ लगाई गई धाराएं कम हो जाएंगी। अगर आप इस बारे में केस दर्ज होने से पहले यह बात बताते तो मैं आपकी मदद कर सकता हूं। मगर अब जब केस दर्ज हो गया और आपने मेरे संज्ञान में यह समाचार ला दिया तो यह समाचार कायदे से प्रकाशित होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह समाचार हमारे अखबार की मिसिंग में आएगा। इसके बाद मैंने उनका फोन काट दिया और उस समाचार से संबंधित पूरी डिटेल बाढड़ा के थाना प्रभारी से लेकर उसे पूरे विस्तार से प्रकाशित किया।
मेरे समाचारों के चलते मेरे परिवार के 2 सदस्यों को परेशानी का सामना करना पड़ा
हालांकि मेरी इस बेबाकी और समाचारों के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करने का असर मेरी पत्रकारिता पर तो नहीं आया, लेकिन मेरे समाचारों के चलते एक बार मेरे जीजा को जो उस समय पब्लिक हैल्थ में एसडीई थे उनका बिना किसी वजह के डिमोशन कर उन्हें जेई बना दिया तो एक बार मेरे बड़े भाई जो पटवारी हैं उनको बिना वजह सस्पेंड कर दिया गया। बात 2002 की हैं। उस समय हरियाणा सरकार ने प्रदेश में यह सर्वे शुरू कराया था कि आखिर देश और प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में लागू की गई डीपीईपी की स्कीम कामयाब क्यों नहीं हुई। उसके लिए मुझे भी सर्वे में मैरिट के आधार पर एक महीने के लिए चुना गया था और जिले में हमारी 24 सदस्यों की टीम गठित कर जिले के चुनिंदा स्कूलों में जाकर दो-दो दिन सर्वे करना था। इसलिए मैंने अपनी फैक्स मशीन को अपने थैले में डाला और मैं दिन में सर्वे करता और शाम को बहल क्षेत्र के समाचारों के अलावा उक्त सर्वे के दौरान मेरे सामने आने वाली खामियों के बारे में भी समाचार लिखता था।
जुई क्षेत्र के एक स्कूल में कोई अध्यापक पूरे दिन ही नहीं आया
इसी दौरान मैं और मेरी टीम में दादरी का एक साथी कुलदीप श्योराण जो अब अध्यापक की नौकरी कर रहा है, जुई क्षेत्र के एक गांव के स्कूल में सर्वे के लिए पहुंचे। वहां जाकर हमने देखा कि वहां के प्राइमरी स्कूल में नियुुक्त दोनों में से एक भी अध्यापक नहीं आया। हालांकि हमने उस दिन बच्चों को पढाया और अपने सर्वे का काम भी पूरा किया। इसी दौरान हमने बच्चों से पूछा कि क्या ये अध्यापक रोजाना स्कूल में आते हैं। तब उन बच्चों ने बताया कि शायद सप्ताह में एकाध बार। बाकि दिनों में वे यहां मौज मस्ती करते हैं और यहां का चपरासी ही स्कूल को देखता है। इस पर हमने उक्त चपरासी से उन अध्यापकों का हाजिरी रजिस्टर मंगवाया और उन दोनों अध्यापकों जिनमें एक महिला अध्यापिका भी थी की गैरहाजिरी लगा दी। इसके बाद दूसरे दिन भी उस स्कूल में उन दोनों में से एक भी अध्यापक नहीं आया। इसलिए हमने दूसरे दिन भी यही किया और उसकी रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को सौंप इस बारे में मैंने एक समाचार भी पूरे विस्तार से प्रकाशित किया कि आखिर जिले के सरकारी स्कूलों में अध्यापकों के क्या हालात हैं। खैर वह बात उस दिन आई गई हो गई। मगर उक्त महिला अध्यापिका का भाई एक कांग्रेस नेता के बहुत करीब था। इसलिए उसे मेरो समाचार खटक गया, क्योंकि मेरे समाचार और हमारी सर्वे रिपोर्ट पर उन दोनों अध्यापकों को सस्पेंड कर दिया गया।
कांग्रेस सत्ता में आई तो उक्त अध्यापिका के भाई के कहने पर मेरे जीजा का डिमोशन करवा दिया
इसके बाद मैं तो उस समाचार को भूल गया था, लेकिन जब 2005 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो उक्त महिला अध्यापिका के भाई को और तो कुछ सूझा नहीं, उन्होंने अपनी पहुंच के बलबूते मेरे जीजा का डिमोशन करा दिया और उन्हें एसडीई से जेई बना दिया। इसकी जानकारी मिलने पर हमने पता किया कि किस नेता या वर्कर के कहने पर ऐसा किया गया तो वह नाम सामने आ गया। इस पर हम उसके पास गए तो उसने सीधा मुझ पर उंगली उठाते हुए कहा कि तब तो तूं मेरी बहन के खिलाफ बहुत समाचार लिखता था, अब अकल आ गई ठिकाने। उसका यह जवाब सुनकर मैंने उनसे कहा कि महाशय समाचार मैंने लिखा, अगर वह गलत था तो आपके पास और भी रास्ते थे, आप उनको अपनाते। आप मेरे समाचारों को लेकर मेरे परिवार या रिश्तेदार को इसकी प्रताड़ना क्यों देने पर तुले हुए हो। इस पर उन्होंने कहा कि जो जैसा करेगा, उसके साथ हमें भी कुछ करना आता है। हालांकि उस दिन मुझे पूरे परिवार की ओर से शर्मिंदा होना पड़ा और पूरे परिवार ने मुझ पर डांट मारते हुए कहा कि एक तूं ही इस दुनिया में हरीशचंद्र है क्या। हालांकि अंदर से मुझे भी दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन कर भी क्या सकता था। खैर मेरे जीजाजी ने सरकार के उस फैसले पर अदालत में याचिका दायर की तो अदालत ने एक महीने में ही अपना फैसला सुनाते हुए मेरे जीजाजी को फिर से जेई से एसडीई के पद पर नियुक्त करने के आदेश जारी किए।
भाई रहा 14 महीने तक सस्पेंड
इसी तरह का एक दूसरा किस्सा मेरे बड़े भाई को लेकर हुआ जिसमें एक बार फिर मुझे परिवार के तानों और परेशानियों का सामना करना पड़ा। हुआ यूं था कि शहर के कांग्रेसी नेताअों के एक गुट का समाचार मेरे सामने आया तो मैंने उस समाचार को लगातार कई दिन तक लिखा। इसका बदला उन लोगों ने मेरे भाई को यह कहकर सस्पेंड करा दिया कि इसने मुआवजा वितरण में धांधली की है। हालांकि पहले उसकी जांच लोहारू के एसडीएम से कराई, लेकिन मेरे भाई की कोई कमी नहीं मिली। उसके बाद यह जांच सिवानी के एसडीएम से कराई तो वहां से भी कोई कमी सामने नहीं आई तो बाद में यह मामला भिवानी के एसडीएम को सौंप दिया। मगर उन्होंने भी सभी तरह के रिकार्ड चैक किए, लेकिन कोई कमी हो तो सामने आए ना। इसके बावजूद मेरे भाई को बहाल नहीं किया जा रहा था। इसी दौरान वे नेता एक दिन बहल में एक कार्यक्रम में शरीक होने गए तो उनसे मेरे भाई ने मुलाकात की तो उन्होंने सीधा जवाब देते हुए कहा कि तेरा भाई जो अपने आपमें खुद को बड़ा पत्रकार मानता है, वह हमारे कहने के बावजूद हमारे खिलाफ समाचार प्रकाशित करने से नहीं रूका, इसलिए अब उसकी लेखनी की करतूत किसी को तो झेलनी ही पड़ेगी। इस पर मेरे भाई ने यह बात मेरे पूरे परिवार के अलावा मेरे रिश्तेदारों को भी बता दी। इसके अलावा उन्होंने मेरे पास फोन करते हुए कहा कि अगर मेरी नौकरी ही खानी है तो बना रह हरिशचंद्र की औलाद। इसके बाद मैंने उक्त नेता से एक पत्रकारवार्ता में सीधे कह दिया कि अगर आपको मेरे समाचारों से दिक्कत है तो आप इसका दर्द मुझे देते, मेरे परिवार के किसी सदस्य को बेवजह क्यों परेशान कर रहे हो। इस पर उन्होंने कहा कि तेरी कोई कमजोरी सामने नहीं आ रही, इसलिए हमने तेरे भाई को सस्पेंड करा दिया। उनका यह जवाब सुन मैंने भी उनसे कह दिया कि अगर ऐसी बात है तो जब तक पत्रकारिता में हूं, मेरी लेखनी ऐसे ही चलती रहेगी, लेकिन आप लोग आज सत्ता में हो, कल जब आप सत्ता में नहीं होगे तो मेरा और मेरे परिवार का क्या बिगाड़ लोगे। आखिरकार जब 2014 में विधासभा चुनावों की घोषणा होने के कुछ ही दिन बचे थे तो मैं खुद डीसी के सामने पेश हो गया और कहा कि अगर मेरे भाई के काम में किसी तरह की खामी है तो आप उसे 14 महीने से सस्पेंड किए हुए हो, आप उस टर्मिनेट क्यों नहीं कर देते। मेरे इतना कहने पर उक्त डीसी साहब ने भिवानी के एसडीएम से मेरे भाई के केस की फाइल मंगवाई और उसे देखते हुए कहा कि इसमें तो तेरे भाई की कोई कमी सामने नहीं आ रही। इस पर मैंने उन्हें कहा कि मैं भी तो यही कह रहा हूं। यकीन मानिए उक्त डीसी साहब ने उसी दिन मेरे भाई का सस्पेंशन आर्डर रद्द करते हुए उन्हें बहाल कर दूसरे दिन ही ड्यूटी ज्वाइन करा दी। यह लेख मैंने इसलिए लिखा है कि अगर आप सच्चे और निडर पत्रकार हो तो आपको सैंकड़ों समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कोई आपको मेरी तरह आपके समाचारों से झल्लाते हुए मानसिक रूप से परेशान करेगा या फिर आपके परिवार के किसी सदस्य या रिश्तेदार को परेशान करेगा। मगर जब आप अपने स्टैंड पर कायम रहोगे तो कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता। हालांकि मैं अब भी अपने इस फार्मूले पर अटल हूं, भले ही आज मेरे पास पैसे ना हों। हां कल क्या हो जाए इसका तो किसी को भी नहीं पता। दूसरी ओर अगर आपने समाचारों के चयन के लिए समझौता करना शुरू कर दिया तो समझ लीजिए कि आपके अंदर की पत्रकारिता खत्म हो गई और अाप अपने विवेक की बजाए दूसरों के हाथों की कठपुतली बनते चले जाओगे। लेेेखक हरियाणा के वरिष्ठ पत्रकार हैं