अमृतसर के जर्रे जर्रे में आजादी का इतिहास समाया हुआ है। अप्रैल 1919 में हुए जलियावाला बाग हत्याकांड को भला कौन नहीं जानता। एक सदी बाद भी आजादी के मतवालों की कुर्बानियों की दास्तान सुन कर रुह कांप जाती है। इसी अमृतसर में एक गली ऐसी भी है, जिसके इतिहास का एकछोर जलियांवाला बाग हत्या कांड से जुड़ा हुआ है। वह है गली है गली कोड़ियांवाला, जिसे लोग गली घसीटा के नाम से जानते हैं। (azadi ka amrit mahotsav)
स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के धुंधलकों में झाक कर देखें तो पता चलता है कि इस गली में रहने वाले लोगों या इधर से गुजरने वाले लोगों को तत्कानी वर्तानवी हुकूमत ने रेंग कर चलने और कोड़ो मारने की सजा सुनाई थी। जो इस गली के नाम से जुड़ गया। गली घसीटा में रहने वाला हर व्यक्ति अंग्रेजों की इस बर्बता की दास्तान को अपने बुजुर्गों से सुन कर बड़ा हुआ है। अमृतसर शहर के बीचों-बीच स्थित इस गली में पुराने घरों की जग नई इमारते खड़ी हो गई हैं, पर कुछ घर ऐसे भी है जो बर्तानवी हुकूमत की दास्तान सुनाते हैं। आज भी भले ही इनकी दिवारें दरक रही हैं।

गली के मोहाने पर ही बेकरी दुकान करने वाले एक दुकानदार कहते हैं कि यहं उनका पुश्तैनी घर है। यदा कदा इधर आने वाले पर्यटक इस गली के इतिहास के बारे में पूछते हैं। लेकिन कोई पर्यटन के नक्शे पर इस गली का कोई निशान नहीं है, जिससे इसकी पहचान हो सके। हां इतना जरूर है कि पिछले कुछ साल पहले पंजाब टूरिज्म विभाग की ओर से एक बोर्ड लगा कर इस गली का इतिहास बातने की कोशिश की गई है। (azadi ka amrit mahotsav)
इस लिए मिली थी सजा
वाकया 10 अप्रैल, 1919 का है। उस दिन यहां से एक यूरोपीय मिशनरी की महिला, मार्सेला शेरवुड, जो अपनी साइकिल पर गुजर रही थी। उस समय आक्रोशित भीड़ ने उस महिला पर हमला कर दिया। यह खबर जब ब्रिटिश प्रशासन के कानों तक पहुंची तो उसके कान खड़े हो गए। उस समय जनलर डायर ने आदेश दिया कि इस गली से हो कर गुजरने वाले लोग घसीट कर यानी रेंग कर चलेंगे और उपर अंग्रेज सिपाही कोड़े मारेगे। इस गल के लोगों को यह सजा मिलने के बाद से ही इसका नाम गली घसीटां या कोड़िया वाला पड़ गया।
(azadi ka amrit mahotsav)