
प्रतिकात्मक फोटो ।स्रोत- सोशल साइट्स
हेल्थ डेस्क
कोरोना संक्रमण से पूरा विश्व जूझ रहा है। हालंकि अन्य देशों के मुकाबले भारत में कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों का औसत करीब 80 प्रतिशत अधिक है। इसमें पीछे भातीय लोगों की अन्य देशों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है। बावजूद इसके कोरोना संक्रमित मरीज ठीक होने के बावजूद पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पा रहा है। उनमें कहीं न कहीं कोरोना के लक्षण मौजूद रहते हैं। इस वजह से मरीज कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें सबसे बड़ी समस्या सूखी खांसी, सांस लेने में परेशानी और कमजोरी है। इस नई बीमारी को मेडिकल भाषा में ‘पोस्ट कोविड पल्मनरी फाइब्रोसिस’ कहा जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि अब पोस्ट कोविड पल्मनरी फाइब्रोसिस से ग्रसित मरीज अस्पतालों में आने लगे हैं।
एसएमओ डॉक्टरों एनके सिंह के मुताबिक पोस्ट कोविड पल्मनरी फाइब्रोसिस से ग्रसित मरीजों को सांस लेने में परेशानी, बहुत अधिक धकान, आक्सीजन सेयुरेशन इंप्रव न हो, बार-बार सांस चढ़ना, सूखी खांसी होते रहना जैसे कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
डॉ: सिंह के मुताबिक पोस्ट कोविड पल्मनरी फाइब्रोसिस से पीडि़त मरीजों में ज्यादातर साठ वर्ष से अधिक आयु के ठीक हो चुके मरीज सामने आ रहे हैं। इसमें कुछ ऐसे मरीज भी आ रहे है जो पहले कोरोना संक्रमित होने पर वेंटिलेटर पर रह चुके हैं। इसके अलावा जिन मरीजों को सेवियर कोरोना इंफैशन रहा हो उनमें यह समस्या आ रही है। ऐसे मरीजों को उपचार की जरूरत है।
क्या है पोस्ट कोविड पल्मनरी
डॉ: एनके सिंह के मुताबिक पोस्ट कोविड पल्मनरी फाइब्रोसिस एक ऐसी स्थिति है, जिसमें फेफड़ों के नाजुक हिस्सों को नुकसान पहुंचता है। फेफड़े संक्रमित और सख्त हो जाते हैं। एक्टिव फेफड़ा कम रह जाता है जिससे आक्सीजन और बार्डन डाइआक्सइड एक्सजें होना कम हो जाता है। वे कहते हैं कि अगर सही ढंग से इलाज न होतो ता उम्र फेफड़ों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
डॉक्टर सिंह कहते हैं कि अगर किसी को कोरोना हो गया और उसका आक्सीजन सेचुरेशन लगातार कम हो रही है, लेकिन संक्रमित व्यक्ति अस्पताल में दाखिल नहीं होना चाहता तो स्थानीय स्तर पर ही दवा देते रहें। आक्सीजन सेचुरेशन कम होने का मतल यह कि बीमारी ने पेशेंट के फेफड़ों पर असर कर दिया है। ऐसे में उसे तत्काल अस्पताल में दाखिल करवाएं।
एक कारण यह भी हो सकता है कि उपचार के बाद मरीज नेगेटिव आने पर नियमों पालन नहीं कर रहा है। ऐसे में पोस्ट कोविड पल्मनरी का खतरा बढ़ जाता है। दिशानिर्देशों के तहत कोरोना पेशेंट को कम से कम आठ सप्ताह तक मॉनिटर करना होता है। इसके इलावा सेवियर कोवडि मरीज को पोस्ट कोविड पल्मनरी फ्राइब्रोसिस हो सकता है। यह वह मरीज होते हैं जिनकों लंबे समय तक वेंटिलेटर पर हना पड़ा हो। इसके आलावा मोटापा और शुगर से जूझ रहे मरीजों को भी पोस्ट कोविड फाइब्रोसिस हो सकता है।
चिकित्सकीय परामर्श मानें
डॉ: सिंह के अनुसार अगर किसी कोरोना संक्रमित या संदिग्ध मरीज की आक्सीजन सेचुरेशन ९५ के करीब आ जाए तो उसे अस्पताल में हो भर्ती हो जाना चाहिए या करवा देनाचाहिए। तत्काल उपचार शुरू होने से उसके फेफड़ों में सूजन की संभावना को कम किया जा सकता है। सूजन जितना ही कम होगा उतना ही फाइब्रोसिस कम आएगा। दूसरा कोरोना पेशेंट के ठीक होने बावजूद उसे चिकित्सकीय परामर्श को माना चाहिए। क्योंकि कोरोना के प्रभाव दूगामी होते हैं। इसलिए कदम कदम पर सावधानी जरूरी है।