फीचर डेस्क
विजयदशमी के दिन नीलकंठ पंछी का दर्शन करना अति उत्तम माना गया है। मान्यताओं के अनुसार नीलकंठ को भगवान शिव का प्रतिनिधि भी कहा जाता है । ऐसी मान्यता है कि विजयदशमी के दिन सुबह उठकर नीलकंठ पंछी के दर्शन करने से भाग्योदय हो जाते हैं।
इस पक्षी को धरती पर भगवान शिव के प्रतिनिधि के रूप में भी जाना जाता है । पौराणिक मान्यताओं के चलते इस मनमोहक पक्षी के दर्शन के लिए लोग दशहरे के दिन सुबह सवेरे उठकर घर की छत फर, बगीचा में या खेतों की तरफ चले जाते हैं और आकाश, खेत की मुंडेर या फिर पेड़ों की टहनियों को निहारते रहते हैं कि शायद नीलकंठ उन्हें दिख जाए। पूरा वर्ष नीलकंठ के दर्शन से उनका सब कार्य सफल होता रहे।
धनधान्य की होती है वृद्धि
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विजयदशमी के दिन नीलकंठ पंछी के दर्शन होने से घर में सुख समृद्धि एवं धन धन की वृद्धि होती है। फलदाई एवं शुभ कार्य घर में अनवरत चलते रहते हैं । दशहरे के दिन सुबह से लेकर शाम तक किसी भी वक्त नीलकंठ पंछी का दर्शन होना शुभ माना जाता है।
नीलकंठ पंछी बनकर भगवान शिव आए थे धरती पर
कहते हैंं कि श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजय दशमी का पर्व जीत का पर्व है। दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्म हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खुद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रूप में धरती पर पधारे थे।
भगवान शिव का प्रतिनिधि है नीलकंठ
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव अमृत के साथ निकले विश्व को पी गए थे। इस गरल को कंठ में रोकने की वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था। इसी वजह से भगवान शिव का एक नाम नीलकंठ भी है। कहते हैं कि भगवान शंकर ही नीलकंठ हैं और इन्होंने अपने प्रतिनिधि के रूप में नीलकंठ पंछी को धरती पर भेजा था। यानी दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान शिव ही नीलकंठ का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं।