Home पंजाब सनात संस्कृति के धर्म ध्वजा वाहरक थे ओम जय जगदीश हरे… के रचनाकार पं.श्रद्धाराम पिल्लौरी

सनात संस्कृति के धर्म ध्वजा वाहरक थे ओम जय जगदीश हरे… के रचनाकार पं.श्रद्धाराम पिल्लौरी

by Jharokha
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Pandit Shraddharam Pillauri, creator of Om Jai Jagdish Hare... was the flag bearer of the religion of Sanat culture.

सिद्धार्थ मिश्रा, अमृतसर
अखिल भारतीय संस्कृत विकास परिषद् ने संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान एवं विश्व प्रसिद्ध आरती “ओम् जय जगदीश हरे” के रचयिता पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी का 187 वां जन्मदिवस राष्ट्रीय कार्यालय कटड़ा बघियां रानी हवेली में मनाया गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ: शिवप्रेम शर्मा ने कहा की सनातन धर्म में “ओम जय जगदीश हरे” महा आरती का गायन बड़ी श्रद्धा से किया जाता है, कोई धार्मिक कार्य इस आरती के गायन के बिना अधूरा और निरस सा प्रतीत होता है ।

राष्ट्रीय प्रवक्ता राज कुमार शर्मा ने कहा कि इस महा आरती की धुन इन्होंने स्वयं तैयार की थी, इसके मधुर भाव युक्त स्वर आज भी आरती के रूप में पूरे विश्व में जहां -जहां सनातनी हिंदू हैं वहां- वहां बड़ी श्रद्धा से गाए जाते हैं। वह एक महान संगीतकार थे।

समाज सेवक सिद्धार्थ मिश्रा ने कहा कि पंडित जी का जन्म 30 सितंबर 1887 को धार्मिक शहर फिल्लौर में एक संस्कृतज्ञ परिवार में हुआ था । घर से ही संस्कृत और धार्मिक संस्कारों की शिक्षा मिली 5 वर्ष की आयु में ही इनका यज्ञोपवीत (जनेऊ) संस्कार हो गया। संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य डॉ० पुष्पराज शर्मा ने कहा कि पंडित जी संस्कृत, हिन्दी, संगीत तथा ज्योतिष के उद्भट विद्वान थे । इन्होंने श्रीमद् भगवत गीता, रामायण, महाभारत तथा ज्योतिष का सरल ज्ञान जन-जन तक पहुंचाया । इन्होंने बाल विवाह, कन्या हत्या का विरोध किया था, इसके साथ-साथ धर्म परिवर्तन रोकने का प्रयास किया। प्राचार्य ने के खेद प्रकट किया कि उनके द्वारा लिखी गई आरती को कुछ स्थानों पर कुछ एक शब्दों बदलकर गाया जाता है। जिन शब्दों का कोई अर्थ ही नहीं होता । इनका तपस्वी एवं साधनामयी जीवन मानव जाति के लिए अनुकरणीय है ।

जब वे महाभारत की कथा करते थे तो लोग दूर-दूर से सुनने आते थे उनकी कथा को लोग बड़ी भाव एवं श्रद्धा से सुनते थे । उनके अनुयायियों की भारी भीड़ को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने उन पर सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने का आरोप लगाया इस कारण उन्हें शहर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने एक प्रकार से प्रच्छन्न रूप में भक्ति आंदोलन का सूत्रपात किया था

उनके जन्म स्थान फिल्लौर में तथा तत्कालीन धार्मिक , व्यापारिक और संस्कृत के मुख्य केंद्र लाहौर में इन दोनों स्थानों पर “ज्ञान मंदिर” की स्थापना की है। 24 जून 1821 को लाहौर में गो लोक गमन पर गए थे। इस अवसर पर पंकज रणधेव, विनोद कुमार, कुलभूषण छपरा, मिश्रा जी, राकेश मेहरा, श्याम सुंदर एवं रघुनाथ राजा उपस्थित रहे

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