देशभर रामलीलाओं का मंचन शुरू है। कहीं ताड़का बध तो कहीं सीता स्वयंवर का मंचन किया जा रहा है। रामलीला मंचन के दौरान लोगों को ताड़का बध की लीला का इंतजार रहा है। खासकरके बच्चों को । क्योंकि ताड़का को अति भयावह और बलशाली दिखाया जाता है। ताड़का थी भी ऐसी है।
ताड़का के आतंक से उस जमाने के ऋषि-मुनि आतंकित थे। आखिरकार इस स्थाई समाधान निकालने के लिए विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे और श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर आए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतनी बलशाली ताड़का का वध करने के लिए राम ने किस देवी की पूजा की थी। चलिए हम बताते हैं। यह देवी हैं मंगला भवानी।
मंगला भवानी का यह मंदिर उत्तर प्रदेश बलिया जिले के उजियार-भरौली में पड़ता है। यह अतिप्राचीन मंदिर गंगा नदी के बाएं तट पर स्थित है। मां मंगला भवानी मंदिर के एक तरफ बिहार राज्य का बक्सर तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का बलिया और गाजीपुर जिले की सीमाएं लगती है। कहा जाता है कि इस स्थान की गणना शक्तिपीठों में होती है। यहां वर्षभर श्रद्धालुओं का आनाजाना लगा रहता है लकिन नवरात्र के दिनों में इनकी संख्या अधिक हो जाती है। यहां उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, बलिया बनारस तो बिहार के बक्सर, डुमरावं, सासाराम, आरा सहित अन्य जिलों के हजारों लोग पहुंच कर पूज अर्चना करते हैं।
यहां भगवान राम ने की थी पूजा
मंदिर के पुजारी शुभचिंतक पांडेय ने कहा, ‘मैं इस मंदिर पर पांचवें पीढ़ी पर हूं। यह शक्तिपीठों में से एक है। इसी माता का आराधना भगवान श्री राम करके ताड़का का वध किए थे। यहां भक्तों की हर मुरादे माता पूरी करती हैं। आज तक जो इस दरबार में आया वह खाली नहीं गया। माता ने हर भक्तों की झोली भर दी। उन्होंने बताया कि बक्सर जाते समय भगवान राम ने यहीं पर देवी मंगला भवानी की पूजा की थी। इसके बाद वह उजियार हाते हुए गांगा पार कर बक्सर पहुंचे और ताड़का का वध किया।
उन्होंने बताया कि भगवान श्री राम कारों के कामेश्वर धाम से जब चले तो इस स्थान पर आते-आते भोर हो गया। उसी के कारण इस क्षेत्र का नाम उजियार भरौली पड़ा। क्योंकि भगवान बड़े दुविधा में थे अस्त्र उठाना नहीं चाहते थे। तो उन्होंने यही माता का आराधना किया और माता ने रक्तबीज के वृत्तांत को सुना कर भगवान श्री राम के दुविधा को दूर किया। उन्होंने बताया कि समय के अनुसार अस्त्र उठना भी आवश्यक होता है। ऐसे ही दुविधा में मैं भी एक बार थी. अंततः वह दुविधा अस्त्र उठाने के बाद रक्तबीज के वध से समाप्त हुई। यह सच्चा दरबार शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।