पं. दयाशंकर चतुर्वेदी: हिंदू धर्म का मूल आस्था और अनुष्ठान है। इसमें व्रत और त्योहारों का महत्व होता। इसमें से एक है हरतालिका तीज। हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता के अनुसार इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। इस वर्ष हरतालिका तीज 21 अगस्त को मनाई जाएगी। पूजन का समय सुबह 6:54 से शाम को 9:45 बजे तक है।
धार्मिक मान्यता
हरतालिका तीज के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा करती है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। कहीं-कहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं। हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का पर्व है। मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। तभी से इस व्रत का शुभारंभ माना जाता है।
व्रत के नियम और विधि
हरतालिका तीज व्रत में व्रती अन्नजल ग्रहण नहीं करता। व्रत के अगले दिन सुबह पूजा के बाद जल पीकर व्रत का परायण करने का प्रावधान है। मान्यता है कि तीज व्रत एक बार शुरू करने पर उसे उसे बीच में नहीं छोड़ा जा सकता।
पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में की जाती है.
तीज के दिन भगवान शिव, पार्वती और गणपति की रेत और काली मिट्टी की प्रतिमा बनाई जाती है।
– इसके बाद भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का पूजन करें।
माता पार्वती को सुहाग की सारी वस्तुएं चढ़ाएं।
– शिव जी को धोती और गमछा चढ़ाएं। व्रत के परायण के बाद चढ़ाई हुई वस्तु ब्राह्मण को दान कर दें।
– तीज की कथा सुनें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं और हलवा का भोग लगाकर व्रत खोलें।