रजनीश मिश्र, बाराचवर (गाजीपुर) : जिला मुख्यालय से करीब चालीस किलो मिटर की दूरी पर स्थित करीमुद्दीनपुर में मौजूद ब्रिटिश इंडिया का थाना अपने निर्माण के करीब 118 साल बाद भी मजबूत स्थित में है। मुहम्मदाबाद-चीतबड़ागांव रोड स्थित यह थाना अब भी वैसा ही जैसा अंग्रेजों के जमाने में हुआ करता था। ग्रामीण बताते हैं की ये वही ब्रिटिश कालीन थाना है जहां कभी स्वतंत्रता सेनानियों को फिरंगियों द्वारा पकड़ कर बंद कर किया जाता था। करीमुद्दीनपुर थानाध्यक्ष ने बताया की तब से लेकर अब तक कुछ खास बदलाव नहीं हुए है।
थाना अध्यक्ष दिव्य प्रकाश सिंह ने बताया कि आज भी पुराने भवन में ही थाना चल रहा है। इतना जरूर है कि इनमें से कुछ एक आवास गिर गए हैं। लेकिन जो हैं वह आज भी मजबूत स्थिति में हैं। इन भवनों का जिर्णोद्धार करवाया गया है।
सन् 1902 मे हुआ था थाने का निर्माण
थानाध्यक्ष दिव्य प्रकाश ने बताया कि गजेटियर के अनुसार थाने का निर्माण सन् 1902 मे ब्रिटिश हुक्मरानों ने कराया था। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि उस समय इस थाने के अंतर्गत बलिया जिले का कुछ हिस्सा भी आता था। तब बलिया गाजीपुर की तहसील हुआ करती थी।
बलिया और गाजीपुर के बीच में है थाना
बलिया और गाजीपुर के बीच में है थाना
हुकुमत को नियंत्रित करने के लिए गोरो ने करीमुद्दीनपुर थाने का निर्माण सोच समझ कर कराया था। शासकीय नजर से महत्वपूर्ण यह थाना बलिया और गाजीपुर के मध्य में है। गाजीपुर जिला मुख्यालय से पैतिस किलोमीटर की दूरी पर पड़ता हैं। यहां के स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं की अंग्रेजों ने थाने का निर्माण बहुत सोच समझकर कराया था। लोग बताते हैं कि इस थाने क्षेत्र से सटा कुछ गांवो मे बगावत होती थीं, तो इसी थाने से घुड़सवार पुलिस जाती थी।
पांच हजार रुपये में अंग्रेेेेजों ने बनवाया था थाना
थानाध्यक्ष ने बताया की सरकारी रिकॉड के मुताबिक अंग्रेजों ने सन् 1902 मे थाने का निर्माण 5774 रुपये में कराया था। थाने मे जितने भी अवास उस समय बने थे सबकी लागत अलग अलग थी।
दो बिघा आठ बिसवा है रकबा
करीमुद्दीनपुर थाने का कुल रकबा दो बिघा आठ बिसवां सोलह धुर हैं। जिसमें पुलिस स्टेशन ऑफिसर के लिए अवास। सब इंस्पेक्टर लिए आवास, हवालात, मालखाना और सिपाहियों के लिए बनाए गए बैरक आज भी मौजूद हैं।
113 रुपये में हवालात और 131 रुपये में बना था दारोगा का आवास
रकारी रिकॉर्ड के मुताबिक करीमुद्दीनपुर थाने में बनाएं गए कमरों की लागत अलग-अलग है। आफिस, बैरक आदि मिलाकर कुल 5774 रुपये है। उस समय अंग्रेजों ने 113 रुपये में हवालात बनवाया था। जबकि पुलिस स्टेशन ऑफिसर के आवास निर्माण में 131 रुपये। बैरक, अस्तबल, मेस थाने की बाउंड्री आदि में भी रकम खर्च की गई थी।
कांस्टेबल के लिए बनाये गये थे चार क्वार्टर
ब्रिटिश हुक्मरानों ने कांस्टेबल के लिए चार क्वार्टरों का निर्माण कराया था। इन कास्टेबल मे ज्यादातर फिरंगी ही होते थे। भारतीयों की बात करे तो किसी थाने पर एकाध भारतीय ही मौजुद होते थे।
करीमुद्दीनपुर में बंद थे स्वतंत्रता सेनानी सरयू पान्डेय
बुजुर्ग ग्रामीण बताते है की वो दौर सन् 1941- 42 का था। जब फिरंगियों के नाक मे दम करने वाले स्वतंत्रता सेनानी व कम्युनिस्ट पार्टी के नेता सरयू पान्डेय को पकड़ा गया था। लोग बताते हैं कि गोरी सरकार ने सरयू पांडेय को पकड़ कर इसी थाने मे बन्द किया था।
रखरखाव के अभाव में गिर गए ज्यादातर कमरे
अंग्रेजों के जमाने के बने इस थाने की कुछ इमारते गिर गई है तो कुछ आज भी खड़ी हैं। कुछ का पुनरोद्धार करवाया गया तो कुछ के छत टपक रहे हैं। 70-80 के दशक में थाने का जो भवन गिर गया वह दोबारा नहीं बना। हालत यह है सिपाहियों के रहने के लिए लिए भी अब जगह कम पड़ रही है।