वाराणसी : मोक्ष दायीनी Varansi वैसे तो मंदिर और घाटों के लिए जग प्रसिद्ध है। वाराणसी Varansi की खूबसूरती की पूरी दुनिया कायल है। वाराणसी धर्मध्वजा, साहित्य और संस्कृति की युगों युगों से संवाहक रही है। वाराणसी के मंदिरयों की अपनी एक पहचान है। इन्हीं मंदिरों में एक प्रसिद्ध मंदिर है रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Ratneshwar Mahadev Temple) ।
वाराणसी की मणीकर्णिका घाट पर स्थित यह मंदिर धर्म नगरी के अन्य सभी मंदिरों से अलग है। पत्थरों से बने इस मंदिर की वास्तु शैली इतनी उम्दा है कि वारणसी में मंदिरों के दर्शन करने वाला श्रद्धालु रत्नेश्वर महादेव मंदिर (Ratneshwar Mahadev Temple) में आ कर संम्मोहित हो जाता है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यह पीसा मिनार से भी अधिक झुका हुआ है।
400 साल के इतिहास को संजोए है 9 डिग्री झुका यह मंदिर
ऐतिहासिक साक्ष्यों और लोक मान्यताओं के अनुसार वाराणसी में गंगा की तलहटी में बना यह मंदिर अपने आप में 400 साल के इतिहास को संजोए हुए है। कहा जाता है कि यह मंदिर अपने निर्माण के समय यानी 400 से ही 9 डिग्री पर झुका हुआ है। बताया जाता है कि बरसात के दिनों में जब गंगा अपने उफान पर होती हैं तो यह मंदिर पूरी तरह से डूब जाता है। लेकिन हर साल बाढ़ का सामना करने के वाबजूद रत्नेश्वर महादेव का यह मंदिर आज भी धर्म पताका लहरा रहा है।
रत्नाबाई ने करवाया था मंदिर का निर्माण
ऐतिहासिक साक्ष्यों और लोक मान्यताओं के अनुसार रत्नेश्वर महादेव के अनोखे मंदिर का निर्माण मालवा की महारानी अहिल्याबाई होलकर की दासी रत्नाबाई ने करवाया था। इस मंदिर के बारे में प्रचित है कि महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर गंगा किनारे बना यह मंदिर अपने निर्माण के समय ही दाहिने तरफ झुक गया और तभी से इसी स्थित में ज्यों का त्यो विराजमान है।
कहा जाता है कि रानी अहिल्याबाई की दासी रत्नाबाई ने मंदिर बनवाने की इच्छा जाहिर की थी। इसके बाद रानी अहिल्याबाई ने रत्ना को गंगा किनारे की यह जमीन मंदिर निर्माण के लिए दे दी। रत्नाबाई ने मंदिर का निर्माण शुरू करवाया इस दौरान धन की कमी हो गई। इस रत्ना ने अहिल्या बाई से कुछ रुपये लेकर मंदिर निर्माण का कार्य संपन्न करवाया।
मंदिर बनने के बाद रानी अहिल्याबाई ने मंदिर देखने की इच्छा जताई। जब वह मंदिर के पास पहुंचीं तो उन्होंने इस मंदिर की सुंदरता देख अपनी दासी रत्नाबाई से इस मंदिर के नामकरण की बात कही। इसपर रत्ना ने अपने नाम से जोड़ते हुए इस मंदिर को रत्नेश्वर महादेव का नाम दिया। माना जाता है कि जैसे ही इस मंदिर का रत्नेश्वर महादेव मंदिर नाम पड़ा वैसे ही यह दाहिनी ओर झुक गया और तबसे यह इसी स्थिति में है।
गुजराती शैली में बना है यह मंदिर
गुजराती शैली में बने रत्नेश्वर महादेव मंदिर के शिखर से लेकर दिवारों और खंभों तक में एक से बढ़ कर एक नक्काशी की गई है जिसे देख लोग आज भी दांतों तले अंगुलियां दबाते हैं। यह हैरान कर देने वाली कलाकृति लोगों को सोचने पर मजबूर कर देती है कि आज से करीब 400 साल पहले बिना किसी मशीन के सहारे ऐसी बारीक नक्काशी अपने आप में उस युग के इंजिनीयिरंग और कला का उम्दा नमूना पेश करती है।
पुरातत्व विभाग भी कर चुका है सर्वे
मंदिर के एक तरफ झुके होने के कारण इस मंदिर का पुरातत्व विभाग द्वारा निरीक्षण भी किया जा चुका है। भू-वैज्ञानिकों ने इसकी लंबाई व चौड़ाई भी नापी थी। इस दौरान उन्होंने रत्नेश्वर महादेव के मंदिर का झुकाव भी देखा जो 9 डिग्री पर झुका हुआ बताया गया। मंदिर की लंबाई 40 मीटर बताई गई है। यह आर्श्चय की बात है कि इस मंदिर का एक तरफ झुका होना पीसा की मीनार से भी अधिक है। पीसा का मीनार 4 डिग्री में एक तरफ झुका हुआ है, जबिक यह मंदिर 9 डिग्री एंगल में झुका हुआ है। बावजूद इसके इस मंदिर को न तो यूनेस्को की सूची में शामिल किया गया है और ना ही भारत के अजुबों में इसे स्थान मिला है जो मिलना चाहिए।