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अमृतसर: सिख धर्म का काबा कहे जाने वाले श्री गुरु रामदास जी नगरी अमृतसर कीमहाराजा पहचान यहां का स्वर्ण मंदिर है, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि अमृतसर मंदिरों का भी शहर है। यहां की हर गली, हर मोहल्ले में कोई न कोई एक मंदिर ऐसा मिल जाएगा जिसका इतिहास महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल से जुड़ा हुआ है। या यूं कहें कि इनमें से अधिकांश मंदिरों का निर्माण या तो महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया है, या फिर उनके सांमतों और सिपाहसालारों ने। ऐसा ही एक मंदिर मोहल्ला जमादारां दी हवेली में स्थित है, जिसा सीधा संबंध महाराजा राणजीत सिंह और उनके जमादार तेजा सिंह से जुड़ा है।
श्री राधा-कृष्ण को समर्पित अमृतसर के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर का इतिहास करीब दो सौ साल पुराना है। स्वर्ण मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित यह मंदिर शहर के बीचों-बीच स्थित हैं। करीब-करीब खंडहर के रूप में तब्दील हो चुके इस मंदिर के भग्नावशेष आज भी अपने वैभव की कहानी सुनाते हैं। भूतल से करी 150 फिट की ऊंचाई पर पवनांदोलित होता धर्मध्वज सनातन धर्म में आस्था रखने वालों को सहज ही अपनी तरफ आकर्षित करता है, इसे देख ऐसा लगता है कि यह धर्मध्वज बाहें पसारा हिंदूधर्मावंलियों को बुला रहा है।
अष्टकोणीय संरचना पर खड़ा है 150 ऊंचा शिखर
स्थानीय भाषा में जमादार तेजा सिंह हवेली के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की संरचना देखते ही बनती है। इस मंदिर का गर्भगृह भूतल से करीब 12 फिट की ऊंचाई पर बना है। मंदिर के निचले भाग में एक बृहद आंगन और चारों तरफ मेहराबदार बरामदों से बने दो मंजिला अलंकृत कमरे आज भी भले ही खंडहर का रूप ले चुके हैं, परंतु इनकी भव्यता की कहनी दरकती हुई दीवारें सुना रही हैं। इनके ऊपर अष्टकोणीय संरचाना लिए गर्भगृह पर खड़ा करीब 150 फुट ऊंचे मंदिर के शिखर पर धर्मध्वजा लहरा रही है।
मंदिर के बड़े शिर में बना छोटे-छोटे शिखरों का समूह
श्री राधा-कृष्ण मंदरि के मुख्य शिखर पर छोटे-छोटे सैकड़ों और शिखर बनें हैं। इन शिखरों में कलश भी लगाए गए हैं। ये छोटे शिखर दूर से देखने में किसी रुद्राक्ष के माला के समान प्रतीत होते हैं। इस सैकड़ों शिखरों से ऊपर मुख्य शिखर पर एक कलश और भगवान विष्णु का चक्र लगा है। चक्र के ऊपर एक बड़ा सा पीतल का ध्वज लगा है। ध्वज हवा के साथ घूमता है, जिससे हवा की दिशा का पता चलता है, जबकि ध्वज के साथ ही बीच में लगा चक्रर स्थिर रहता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि मंदिर पर लगे गलश सोने के हैं। इन कलशों को महाराजा रणजीत सिंह के समय लगाया था।
नीलम के पत्थर की है मूर्ति, जेष्ठ मास में सूर्य की पहली किरण परड़ती भगवान के माथे पर
मंदिर के पुजारी पं. राजेश शास्त्री कहते हैं कि मंदिर में प्रतिष्ठापति यह मूर्ति नीलम के पत्थर को तराश कर बनाई गई है। वे कहते हैं ऐसी मान्यता है कि पहले जेष्ठ मास में सूर्य की पहली किरण यहां भगवान श्रीकृष्ण के माथे पर पड़ती थी, लेकिन अब शहर में ऊंची-ऊंची इमारते बनने के वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।
श्रीकृष्ण को निरेखते हैं हुनामन
श्रीराध-कृष्ण मंदिर के सामने ही हनुमान जी का एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर प्रतिष्ठापित हनुमान जी मूर्ति की गदर्न थोड़ी टेढ़ी है। इस मूर्ति ऐसे दिशा में प्रतिष्ठापित किया गया है कि उनकी दृष्टि सीधे राधा-कृष्ण मंदिर के गर्भगृह में विराजमान मूर्ति पर पड़ती है। हुनान जी की इस मूर्ति को देखने से ऐसा लगता है कि वह भजन गा हरे हैं और सीधे अपने आराध्य को देख रहे हैं।
हवा और रोशनी का है उम्दा प्रबंध
लखौरी ईंटों से इस मंदिर का निर्माण कलश के आकार में किया गया है। इस पूरे मंदिर के निर्माण में कहीं पर थी छड़ अथवा गार्डर को कोई प्रयोग नहीं गया है। मंदिर की दीवारों की चिनाई चूना प्लास्टर की गई है। इस मंदिर में हवा और रोशनी के लिए अलग-अलग दिशाओं में छह रोशनदान बाए हैं। इस मंदिर का तापमान मौसम से हिसाब से नियंत्रित होता है, जो उस समय के वास्तुविज्ञान का अद्भुत प्रदर्शन है।
जमादार तेजा सिंह ने 1834 करवाया था मंदिर का निर्माण
प्रो: दरबारी लाल कहते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 1834 महाराजा रणजीत सिंह के वफादार और कमांडर तेजा सिंह ने करवाया था। वे कहते हैं तेजा सिंह गौर ब्राह्मण था जो आज के उत्तर प्रदेश के मेरठ का रहने वाला था। प्रो: लाल के अनुसार तेजा सिंह का नाम तेज राम था, जबिक उसके पिता मिश्र निद्ध सिख सेना में कमांडर थे। लाहौर दरबार में काम करते समय उसका नाम तेज सिंह रख दिया गया जो बाद में तेजा सिंह हो गया। दरबारी लाल के मुताबिक तेजा सिंह पहले सिख सेना में एक सिपाही के तौर पर तैनात हुआ कमांडर के पद तक पहुंचा और उसने अफगानों के खिलाफ निर्णायक जंग लड़ी। लाल के अनुसार इस राधाकृष्ण मंदिर का निर्माण तेजा सिंह ने करवाया, जिसकारण इसका नाम मंदिर तेजा सिंह पड़ा।
मिलों दूर से दिखता है मंदिर का शिखर
लोगों का कहना है कि मंदिर तेजा सिंह का शिखर इतना ऊंचा है कि आज भी मिलों दूर से दिखाई दिखाई देता है। लोगों की मान्यता है कि तेजा सिख ने इस मंदिर का शिखर इतना ऊंचा इस लिए बनवाया था कि जब वह लाहौर दबार से अमृतसर के लिए चले तो उसे मंदिर की धर्म ध्वजा दिखाई दे। वे कहते हैं कि आज शहर में गगनचुंबी इमारते खड़ी हो गई, फिर भी इस मंदरि का शिखर दूर से दिखाई देता है।
पंजाब टुरिज्म विभाग भी कर चुका है सर्वे
मंदिर के देखरेख कर रहे पं. राजेश शास्त्री कहते हैं कि वर्ष 2023 में यहां पर पंजाब टुरिज्म विभाग की टीम सर्वे करने आई थी। ऐतिहासिक होने के वजह से यह मंदिर अमृतसर हैरिटेज वाक की सूचि में हैं। वर्तमान में इस मंदिर दुर्ग्याणा कमेटी के अंडर है। इसकी देख रेख और ठाकुर जी के रागभोग का खर्च दुर्ग्याणा कमेटी की ओर से जारी किया जाता है।
सावन में पड़ती हैं केसरिया रंग की बूंदें
हवेली जमादारां में मंदिर के पास ही रहने वाले राजेश कुमार, रणजीत सिंह, राजकुमार हांडा और अन्य लोगों का कहना है कि मंदिर परिसर में सावन के महीने में केसरियां रंग की बूंदें पड़ती है। वे कहते हैं कि ये बूंदें केवल मंदिर परिस में ही पड़ी हैं, जबिक अन्य जगहों पर सामान्य होती है।
70 साल पहले था रंग का कारखाना
मोहल्ले के लोगों ने बताया कि मंदिर परिसर में पहले बद्रीनाथ-सुभाषचंद्र नाम से रंग का कारखाना हुआ करता था। धीरे-धीरे यह कारखाना बंद हो गया। लोगों का कहना है कि उचित देखरेख न होने से मंदिर में बने आवासीय कमरे खंडहर के रूप में तबदिल हो गए।
13 साल पहले मंदिर के शिखर पर गिर भी बिजली
राजेश कुमार कहते हैं कि करीब 13 साल पहले इस मंदिर पर बिजली गिरी थी। तेज आवाज से पूरा मोहल्ला थर्रा गया था, लेकिन मंदिर के शिखर पर एक दरार तक नहीं आई। यह घटना किसी चमत्कार से कम नहीं थी।
गाहे बगाहे आते है विदेश पर्यटक भी
मोहल्ले के लोगों का कहना है कि यहां कभी कभार विदेशी पर्यटक भी आते हैं। और मंदिर फोटो ग्राफी और वीडियो ग्राफी करते हैं। उनके पास अमृतसर हैरिटेज वाक का पूरा नक्शा होता है, जिससे वह शहर की संकरी गलियों में स्थित ऐतिहासिक स्थलों को देखते हैं।
लोगों ने की जिर्णोद्धार की मांग
स्थानीय लोगों ने दुर्ग्याण मंदिर कमेटी, जिला प्रशासन और पंजाब टुरिज्म विभाग से मंदिर तेजा सिंह के जिर्णोद्धा करवाए जाने की मांग की। इन लोगों ने कहा कि पंजाब सरकार को इस ओर ध्यान देते हुए इस ऐतिहासिक मंदिर की प्राचीन आभा लौटाई जानी चाहिए, ताकि इसको वही पहचान मिल सके जो महाराजा रणजीत सिंह समय में थी।