
सुखबीर मोटू जी हां आपको अचंभा होगा कि आखिर मुझे यह गुस्सा क्यूं आता है, क्योंकि इस तरह के केसों को ट्रेस करने का काम पुलिस का होता है। मगर मैं खासकर बेकसूर लोगों की हत्या को अपने दिल से ले लेता हूं और तब तक चैन से नहीं बैठता, जब तक वह केस ट्रेस नहीं हो जाता। उसके लिए मैं कुछ अपराधियों से भी संपर्क कर यह जानने की कोशिश करता हूं कि उक्त वारदात को किसने अंजाम दिया होगा।
इसके लिए खासकर राजस्थान की सीमा से सटे और हिसार के कुछ अपराधी मेरे संपर्क में रहते हैं। बात 25 अगस्त 2018 की है, मिलकपुर का बैंक मैनेजर और उस बैंक का गार्ड भिवानी मुख्य ब्रांच से 12 लाख का कैश लेकर बस के माध्यम से मिलकपुर के बस स्टैंड पर उतरे।
जब वे बैंक से मात्र 500 मीटर दूर थे तो पीछे से बाइक पर सवार होकर आए दो नकाबपोश युवकों ने बैंक मैनेजर के आगे बाइक अड़ा उनसे रुपयों से भरा बैग छीनने का प्रयास किया। यह देख बैंक के गार्ड ने बैंक की गन को निकाला तो उन युवकों ने उस गार्ड पर एक गोली चला उसे घायल कर उसकी गन को छीन लिया और उसके बाद उन्होंने बैंक मैनेजर पर 3-4 राउंड फायरिंग की और वे रुपयों से भरा थैला छीनकर फरार हो गए।
घायल हालत में गार्ड पहुंचा बैंक में

इसके बाद घायल हुआ बैंक गार्ड किसी तरह बैंक में पहुंचा और उन्होंने बैंककर्मियों को घटना के बारे में जानकारी दी। इस पर उन्हें तत्काल एक वाहन में हिसार के एक अस्पताल में उपचार के लिए भेज दिया। मगर उक्त बैंक मैनेजर की मौके पर ही मौत हो चुकी थी। पुलिस ने उस केस को उसी दिन से ट्रेस करने के लिए अपनी पूरी जी जान झोंक दी थी।
मगर किसी तरह का कोई सुराग नहीं मिल रहा था। इसका एक कारण यह भी था कि गर्मी के मौसम में दोपहर के समय लोग अक्सर अपने घरों से बाहर कम ही निकलते हैं और उसी के चलते उस वारदात का कोई चश्मदीद गवाह नहीं मिला। इसके अलावा उन युवकों की बाइक किसी सीसीटीवी कैमरे में भी कैप्चर नहीं हुई थी।
भिवानी बैंक के बाहर और अंदर तीन संदिग्ध युवकों की फोटो आई थी सामने
हालांकि मैं भी उसी दिन से उस वारदात को अपने तरीके से ट्रेस करने में जुट गया। इसी दौरान मेरे सामने यह आया कि उस दिन जब बैंक मैनेजर 12 लाख रुपए लेने के लिए भिवानी आए थे, तब उक्त बैंक के बाहर और अंदर तीन युवक संदिग्ध हालत में घूमते देखे गए थे।
इसलिए मैंने उन युवकों के किसी तरह फोटो हासिल किए और उस समाचार को करीब 2 महीने बाद एक बार फिर से जिंदा करने के लिए उसे उन तीन संदिग्ध युवकों की फोटो सहित प्रकाशित किया। यह काम मैंने एक बार नहीं बल्कि दो बार प्रकाशित किया। मगर उन युवकों की पहचान का कोई सुराग नहीं मिल पाया। इसलिए मुझे बड़ा दुख हो रहा था।
इसके पीछे एक मुख्य कारण यह था कि उक्त बैंक मैनेजर के परिजनों ने उस वारदात का खुलासा करने के लिए एक बार भी प्रोटेस्ट नहीं किया। उन्होंने शायद एक दो बार एसपी से ही मुलाकात की और मीडिया के सामने तो बिल्कुल भी नहीं आए। जबकि इस तरह के मामलों में लोग सड़कों पर उतर आते हैं।
हालांकि मैंने भी उस केस को ट्रेस करने के लिए अपने सारे तौर तरीके अपनाए, लेकिन दो साल से ज्यादा का समय होने के बावजूद वह केस अब भी अनट्रेस है और पुलिस के पास उक्त वारदात को अंजाम देने वाले अपराधियों के बारे में जरा सी भी लीड नहीं है। इसलिए मेरी पत्रकािरता की लाइफ में शायद यह पहला केस है जो हत्या के अलावा 12 लाख की लूट से जुड़ा हुआ है और दो साल बीतने के बाद भी ट्रेस नहीं हो पाया है।
इसलिए वह वारदात मुझे अब भी जब कभी याद आती है तो मैं इसमें पुलिस को नहीं खुद का फैल्योर मानता हूं। इसका कारण यह है कि कई बार अनसुलझने से दिखने वाले केसों के बारे में मुझे कुछ ऐसी जानकारियां मिलती थी, जिसके सहारे पुलिस अपराधियों को गिरफ्तार कर लेती थी।
कहानी बीकानेर के बिछवाल में एक ट्रांसपोर्टर की हत्या से जुड़ी है

मुझे साल तो याद नहीं, लेकिन शायद वह 2016 या 2017 जनवरी महीने की 29 तारीख की है। एक दिन मैंने यूं ही तोशाम के थाना प्रभारी और एक प्रकार से छोटे भाई रविंद्र के पास फोन कर लिया। तब उन्होंने मुझे बातों बातों में कहा कि यार मोटू एक सलेमपुर गांव का रमेश प्रधान नाम का युवक है, जो तोशाम थाने में हत्या के एक मामले में नामजद है, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आ रहा।
मैंने उनसे कहा कि यह नाम तो मैंने पहली बार सुना है। इस पर रविंद्र ने कहा कि यह नाम आप इसलिए पहली बार सुन रहे हो, क्योंकि उसने उस वारदात को 2007 या 2008 में अंजाम दिया था। इस पर मैंने रविंद्र भाई से वायदा किया कि अगर ऐसी बात है तो मैं आपको कुछ ना कुछ जानकारी जरूर दूंगा।
उसके दूसरे ही दिन बाद मेरे पास एक समाचार आया कि बीकानेर के बिछवाल एरिया में ट्रांसपोर्ट का काम करने वाले बहल के साथ लगते एक राजस्थान के गांव के व्यक्ति करतार पूनिया की हत्या कर दी। उसके बारे में यह भी सुनने को मिला कि उस वारदात को पिछले करीब 8 साल से करतार पूनिया के पास रहकर उनकी रोटियों पर पलने वाले सलेमपुर निवासी रमेश प्रधान ने अपने साथियों के साथ मिलकर सुपारी लेकर अंजाम दिया है।
बस उसी दिन मेरे कान खड़े हो गए और मैंने रविंद्र भाई को उस वारदात को बताया तो उन्होंने कहा कि यार वारदात का पता तो मुझे भी है, लेकिन रमेश प्रधान कहां है यह बता। इस पर मैंने कहा कि अब मेरा काम आसान हो गया है, आप चिंता ना करें, पहले उस प्रधान को राजस्थान पुलिस के हाथों पकड़वाता हूं।
इसके बाद मैंने इंटरनेट से राजस्थान के तत्कालीन बिछवाल के थाना प्रभारी धीरेंद्र के मोबाइल नंबर 9414251977 पर संपर्क किया और अपना परिचय दिया। इस पर उन्होंने कहा कि आप क्या चाहते हैं। मैंने कहा कि मैं इस केस की थोड़ी सी डिटेल चाहता हूं, ताकि आपकी कुछ मदद कर सकूं।
मुझ पर ही झल्लाने लगे
मेरी यह बात सुनकर उक्त थाना प्रभारी मुझ पर झल्लाते हुए बोले कि तूं पुलिस से ज्यादा स्याणा है क्या। वे बोले पत्रकारों का काम पुलिस की छवि खराब करने की होती है और शायद आप भी यही करना चाहते हो। यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया। इस पर मैंने उनके पास दोबारा कॉल की और कहा कि अगर आपको रमेश प्रधान चाहिए या नहीं।
इस पर उनका दिमाग घूमा और कहा कि तेरे पास उसके बारे में क्या जानकारी है। फिर मुझे लगा कि अब शायद यह लाइन पर आया है। उसके बाद मैंने उसे रमेश प्रधान के बारे में पूरी सटीक जानकारी देते हुए कहा कि वह जिस गांव में छिपा हुआ है उस थाना क्षेत्र की पुलिस को सूचना मत देना, क्योंकि उस ठिकाने से वहां की पुलिस को मंथली जाती है।
मेरी यह बात सुनकर वे और भी हैरान हो गए। मगर दूसरी रात उन्होंने मेरे बताए ठिकाने पर छापा मारा तो वहां रमेश प्रधान के अलावा दो तीन और अपराधी मिल गए। इसकी जानकारी मिलने पर बिछवाल थाना प्रभारी के पास फोन करते हुए कहा कि बोल प्यारे पत्रकार पुलिस की छवि खराब करते हैं या पुलिस की मदद भी करते हैं।
इस पर उन्होंने कहा कि भाई साहब उस दिन मुझसे गलती हो गई थी, क्योंकि यहां के पत्रकारों ने अपनी छवि कुछ इस तरह की ही बनाई हुई है और वे पुलिस के खिलाफ समाचार प्रकाशित करने का कोई ना कोई बहाना या कमी तलाशने की फिराक में रहते हैं। इसलिए वह सूचना देकर एक ओर जहां मैंने राजस्थान पुलिस को एक कुख्यात अपराधी को गिरफ्तार कराने में मदद की वहीं रविंद्र भाई से किया वायदा भी पूरा किया।
इसलिए मुझे इस तरह हत्या जैसी खासकर बेकसूर लोगों की हत्या का मामला ट्रेस नहीं होता तो मैं उसे अपने खुद के दिल पर ले लेता हूं और सोचता हूं कि शायद मुझसे भी कुछ मिस हो रहा है। हालांकि अब मैं क्राइम पर बहुत ही कम समाचार लिखता हूं, लेकिन जब इस तरह की कोई वारदात होती है और उसकी सूचना मुझे मिलती है तो मुझे बहुत दुख होता है।
आज के लिए सिर्फ इतना ही बहुत है। हालांकि मैं अपने इन लेखों को फेसबुक पर भी पोस्ट करता हूं। वहां मुझसे कई साथी पूछते हैं कि आपको इतना समय कहां से मिल जाता है। मैंने उनसे यही कहा कि मुझे अक्सर जब रात को नींद नहीं आती तो मैं रात को दो, तीन, चार, पांच बजे अपना कंप्यूटर ऑन करता हूं और यह काम मेरा मात्र 20 मिनट का होता है। उसके बाद मैं टीवी पर सोमवार से शुक्रवार तक क्राइम पैट्रोल या शनिवार और रविवार को किसी पुरानी फिल्म देखने में बिताता हूं।
कई बार तो ऐसा होता है कि मेरी पत्नी सुबह सवा पांच बजे उठ जाती है और उसकी आवाज सुनकर मैं कहता हूं कि मेरे लिए एक कप चाय बना देना। उसके बाद उनके हाथों से बनी चाय पीकर शायद मुझे कुछ घंटे के लिए नींद आ जाती है। मगर पिछले 4 दिन से मेरे सिर में दर्द हो रहा है और सुबह उठने को मन नहीं करता। इसलिए मैं पैन किलर टेबलेट लेकर कुछ आराम करने के बाद फिर से अपने काम में जुट जाता हूं।
– लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं