Naga Sadhu Facts: प्रयागराज में महाकुंभ शुरू होने में मात्र कुछ ही माह शेष रह गए हैं। इस कुंभ मेले में दुनियाभर से तहर-तरह के साधु-संत, महात्मा, अखाड़ों और संप्रदयों से जुड़े लोग पहुंचते हैं। इन्हीं में से एक हैं नागा साधु।
नागा साधु का नाम सुनते ही मानस पटल पर जो पहली छवि उभरती है वह नग्न अवस्था में रहने वाले साधु की होती है। नागा जिसका अर्थ भी नग्न होता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ये लोग नग्न अवस्था में कैसे रह लेते हैं। क्या इन्हें सर्दी-गर्मी का अहसास नहीं होता।
नागा साधुओं का नाम सुन कर मन एक कौतुहल और जिज्ञासा होती है आम तौर पर साधु-संतों को भगवा, लाल और पीले या सफेद रंग के वस्त्रों में देखाता है, लेकिन नागा साधु इसके ठीक विरीत होते हैं। नगा साधुओं के हावभाव को देख कर यह भी लगता कि वे गुस्सैल स्वभाव के होंगे, लेकिन यह धारणा गलत होती है, क्योंकि नागा साधु कोमल हृदय के और धर्म परायण होते हैं।
भगवान शिव के उपासक नागा साधु कभी वस्त्र नहीं पहनते, वे अपने शरीर पर धुनी या भस्म लपेटकर घूमते हैं। यही भष्म या धुनी उनका वस्त्र होता है। वे किसी भी मौसम में वस्त्र नहीं पहनते चाहे उन्हें बर्फिलरी पहाड़ियों पर ही क्यों न जाना पड़े। अब आइये जानते हैं नागा साधुओं के बारें वह विचित्र और चौंकाने वाली रहस्यमयी बातों के बारे जिसे बहुत कम लोगों को पता होगा।
प्राकृतिक अवस्था को महत्व देते हैं नागा साधु
नागा साधु प्राकृतिक और प्रकृति को ज्यादा महत्व देते हैं। इसलिए वह दिगंबर अवस्था यानी नग्न रहते हैं और कभी कपड़े नहीं पहनते। नागा साधुओं का मानना है कि बच्चा जब जन्म लेता है तो वह नग्न ही रहता है इसी वजह से नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं और अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं।
प्रकृति को समर्पित शरीर
कड़ाके की ठंड में भी नागा साधुओं को नग्न देख है हैरानी होती है कि क्या उन्हें ठंड नहीं लगती। ठंड न लगने के पीछे बहुत बड़ा कारण है। इनके बारे में कहा जाता है नागा साधु योग करते हैं, जो उन्हें ठंड से निपटने में मदद करता है। इसके अलावा वह काफी संयमित रहते हैं। नागा साधुओं का मानना है कि इंसानी शरीर को जिस स्थिति-परिस्थित में ढालेंगे वह उसके अनुरूप हो जाएगा।
धरती को ही बिछौना मानते हैं नगा साधु
नागा साधु किसी आश्रम या मठ में निवास नहीं करते और ना ही इनका कोई विशेष स्थान होता है। नागा साधुओं का जीवन बहुत ही कठिन और साधना से पूर्ण होता है। नागा कुटिया बनाकर रहते हैं। ये लोग सोने के लिए किसी चारपाई या बिछौने आ प्रयोग नहीं करते। नागा लोग धरती को ही अपना बिछौना और आसामन को ओढ़ना मानते हैं इसलिए ये जमीन पर ही होते हैं।
दिन में केवल एक बार भोजन और वह भी भिक्षा मांग कर
नागा साधुओं के बारे में कहा जाता है कि वह दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं। नागा साधु एक दिन में केवल सात घरों से भिक्षा मांगते हैं। यदि इन घरो से भिक्षा मिली तो ठीक, नहीं तो भूखे ही सो जाते हैं। नागा साधु पूरे दिन में केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करते हैं।
12 साल लग जाते हैं नागा बनने में
नगा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और चुनौती पूर्ण होती है। वैसे तो नागा बनने की प्रक्रिया में 12 बरस का समय लग जाता है। इनमें छह साल बेहद चुनौतिपूर्ण होता है। क्योंकि इसी छह साल में साधु पूरी जानकारी हासिल करते हैं और मात्र लंगोट धारण करते हैं।
सबसे पहले दी जाती है ब्रह्मचर्य की शिक्षा
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में पहली शिक्षा ब्रह्मचर्य की दी जाती है। इसमें सफल रहने के बाद उन्हें महापुरुष की क्षा दी जाती है और फिर यज्ञोपवीत होता है।
जीते जी करना पड़ता है पिंडदान
नागा साधु बनने के जीते जी परिवार और खुद का पिंडदान करना पड़ता। इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है. यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं।