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बात बहुत छोटी लगती है, लेकिन इसके मायने बहुत हैं

सुखबीर “मोटू”

बात उन दिनों की है जब कमलेश सिंह दैनिक भास्कर के स्टेट हैड हुआ करते थे और वे एक दिन हिसार आए हुए थेे। बस यूं ही मेरा उनसे अकेले में आमना सामना हुआ ताे उन्होंने ही बातचीत की पहल करते हुए कहा कि और क्या चल रहा है। मैंने कहा सर कुछ खास नहीं एक क्राइम रिपोर्टर के पास क्राइम के समाचारों को लेकर क्या खास हो सकता है।

हालांकि,  उनसे बातचीत लंबी चली थी, लेकिन उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या कभी बंदर बनकर देेखा है। कभी जेल जाकर देखा है। मैंने कहा नहीं सर। इस पर उन्होंने कहा कि कभी ये काम करके देखो। हांलाकि हिसार रहते हुए मैंने कई बार जेल जाने के लिए सिविल लाइन थाने में मेरे जान पहचान के लोगों से झूठी शिकायतें दिलाई, लेकिन उस के सिविल लाइन थाना प्रभारी जिन्हें मैं चाचा कहता हूं और अब वे रिटायर हो चुके हैं। वे जानते थे मैं ही जानबूझकर ये शिकायतें दिलवा रहा हूं और उन शिकायतों पर मुझे गिरफ्तार करके जेल भेेजा जाता तो मैं जेल के अंदर की असलियत को बाहर लाकर रख दूंगा।

  इस खबर की चर्चा अब तो होने लगी है

इसका एक कारण यह भी था कि उन दिनों हिसार की जेल में बंदियों के पास मोबाइल मिलना आम बात हो चुकी थी। खैर मेरी वह चाहत वहां पूरी नहीं हुई। मगर एक कविता मेरे जेहन में अब भी है जो उन बेटियों के लिए है जो पैदा होने से पहले ही कोख में मार दी जाती हैं। आखिर उस बेटी को जब कोख में मारा जाता है तो वह भगवान के पास जाकर क्या शिकायत करती हैै। यह एक परिकल्पना वाली कविता है और उस कविता के अंश कुछ इस प्रकार हैं। –
गर्भ में ना बोल सकी अपनी जुबान से, आत्मा ने जाकर की शिकायत भगवान से।
जो खिलाया, वो खाया, जो दिया वो मंजूर था, पालना तो दूर था,
मगर मार दिया जान से, आत्मा ने जाकर की शिकायत भगवान से।
कैसे कहूं डॉक्टर था या लालची जल्लाद था, बोटी-बोटी काटनेे का किया अपराध था,
वो सुनता ना फरियाद था मुझ रोती लहूलुहान से, आत्मा ने जाकर की शिकायत भगवान से। आत्मा ने जाकर की शिकायत भगवान से।
साभार, आर्य समाज।
ये लेख उन बेटियों को समर्पित हैै जो पैदा होने से पहले ही कोख में मार दी जाती हैं।

   जिंदगी जीना आसान नहीं होता 

लेखक हरियाणा के बरिष्ठ पत्रकार हैं








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