
Aloe Vera ki kheti : किसानों को अपनी आय बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती के साथ-साथ औषधीय पौधों की खेती भी करनी चाहिए। इन दिनों एलोवेरा के उत्पाद ट्रेंड में हैं। एलोवेरा को गांव देहात में ढकुआर कहा जाता है। जबकि आयुर्वेद में यह घृतकुमारी या ग्वारपाठा के नाम से जानी जाती है। एलोवेरा का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं के साथ-साथ सौंदर्य प्रसाधनों को बनाने में भी प्रयोग किया जाता है।
भारत में एलोवेरा Aloe Veraका उपयोग अब औद्योगिक तौर पर किया जाने लगा है। Aloe Vera की खेती किसानों को मालामाल कर सकती है। एलोवेरा औषधीय पौधा है जो हमेशा हरा रहता है। माना जाता है कि एलोवेरा उर्ष्णकटिबंधीय प्रदेश का पौधा है। यह मुख्य तौर पर दक्षिणी यूरोप, एशिया और अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है।
एलोवेरा की खेती खेती देश के शुष्क क्षेत्रों से लेकर सिंचित प्रदेशों तक की जा सकती है। इस समय यह मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश में व्यवसायिक तौर पर इसकी खेती की जा रही है। हलांकि अब देश के अन्य राज्यों में भी इसकी खेती होने लगी है। इसकी खासत बात यह है कि एलोवेरा की खेती कम पानी में भी की जा सकती है। इसके बेहतर विकास के लिए सबसे उचित तापमान 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड है। खैर यह पौधा किसी भी तापमान में अपने आप को जीवित रख सकता है।
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किसान इसे सेंट्रल मेडिसिनल एसोसिएशन प्लांट इंस्टीट्यूट द्वारा परीक्षण प्राप्त करके Aloe Vera एलोवेरा के विभिन्न प्रजातियों की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। मान लें कि आपको एलोवेरा को बहुत अधिक मात्रा में विकसित करने की आवश्यकता है, तो उस समय 20-25 सेंटीमीटर लंबा, लगभग चार महीने पुराना, चार पत्तियों वाले इस पौधे को चुनना बिल्कुल आसान है। एलोवेरा के पौधे की ताकत यह है कि इसे खाली करने के काफी समय बाद भी लगाया जाता है।
खाद और उर्वरक
एलोवेरा का विकास कम उपजाऊ यानि उसर भूमि पर भी किया जाता है, क्योंकि कम उर्वरक से बेहतर सृजन किया जा सकता है। फिर भी अधिक उपज के लिए खेत की स्थापना करते समय प्रति हेक्टेयर 10-15 टन खराब हो चुकी गाय की खाद का उपयोग करना चाहिए, यह विषयगत रूप से सृजन का विस्तार करता है। इसकी सिंचाई ड्रिबल वाटर सिस्टम या स्प्रिंकलर द्वारा की जाती है। इसे पूरे साल में तीन से चार पानी सिंचित करना पड़ता है। सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान रखना पड़ता है खेत पानी अधिक न लगे।
एलोवेरा खेती में आने वाला खर्चा
इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (आईसीएआर) के अनुसार एलोवेरा की एक हेक्टेयर में प्लांटेशन का खर्च लगभग 27000 रुपये आता है। जबकि, मजदूरी, खेत तैयारी, खाद आदि जोडक़र पहले साल यह खर्च 45 से 50,000 रुपये के करीब पहुंच जाता है।
आठ से 10 लाख रुपये की कर सकते हैं कमाई
हॉटीर्क्लचर विभाग के अनुसार एलोवेरा की एक हेक्टेयर में खेती से लगभग 40 से 45 टन मोटी पत्तियां प्राप्त होती हैं। इसे आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने वाली कंपनियों और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों को बेचा जा सकता है। इन पत्तों से मुसब्बर अथवा एलोवासर बनाकर भी बेचा जा सकता है। इसकी मोटी गद्देार पत्तियों की देश की विभिन्न मंडियों में कीमत 15,000 से 30,000 रुपये प्रति टन होती है। इस हिसाब से यदि आप अपनी फसल को बेचते हैं तो आप आराम से 8 से 12 लाख रुपये कमा सकते हैं। इसके अलावा दूसरे और तीसरे साल में पत्तियां 60 टन तक हो जाती हैं। जबकि, चौथे और पांचवें साल में प्रोडक्टशन में लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।