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ये लाल कोठी है । यह कोठी कई मायनों में ऐतिहासिक है। इसका इतिहास भी विचित्र है। कोई इसकी तुलना मेरठ की लाल कोठी से करता है तो कोई लाहौर की। बहरहाल यह कोठी और इसकी संचरना है बेहद खूबसूरत। बेशक समय के साथ इसके जिस्म पर झुर्रियां पड़ गई हैं, लेकिन इसका आकर्षण आज भी कायम है।
अमृतसर के क्वींस और कूपर रोड के बीच स्थित यह कोठी करीब सवा सौ साल के ऐतिहासिक चढ़ाव उतार की गवाह रही है। कहा जाता है कि अमृतसर में दिसंबर 1919 में हुए भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान कुछ समय के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरू इसी लाल कोठी में रुके थे।
सिविल लाइंस (क्वींस रोड व कूपर रोड के बीच) में स्थित लाल कोठी अमृतसर की कुछ चुनिंदा व प्रसिद्ध इमारतों में से एक है। इसका निर्माण अमृतसर के प्रसिद्ध कपड़ा कारोबारी रामचंद्र ने करीब 1876 ईः में 50 हजार रुपये की लागत से करवाई थी। लाल रंग की दो मंजिली यह कोठी तत्कालीन अमृतसर की कोठियों में सबसे उंची कोठी के रूप में शुमार थी। इसके छत से श्री हरिमंदिर साहिब में बने बुंगों को भी देखा जात सकता था। उस दौर में इस कोठी में फौव्वारे से लेकर स्वीमिंग पुल तक यानि कि विलासिता के वे सभी साधन मौजूद थे जो होने चाहिए। एक विस्तृत भूभाग के बीच बनी लाल कोठी की फुलवारी को सिंचने के लिए उस जमाने में छह माली तैनात थे।
अमृतसर के इतिहास को करीब से जानने वाले कुछ लेखकों का कहना है कि हाल गेट के सामने टैंप्रस हाल हुआ करता था, जिसे वर्तमान में पिंक प्लाजा मार्केट के नाम से जाना जाता है। वहां पर कभी टैंप्रस सोसायटी के लोग नशे के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाया करते थे। इनमें प्रमुख थे मास्टर संतराम व मास्टर कुंदल लाल।
चार शैलियों की मिश्रित वास्तु कला का उम्दा नमूना लाल कोठी
लाल कोठी वर्तानवी, मुगल व राजपूत कालीन मिश्रित वास्तु सैली का उम्दा प्रदर्शन है। इतिहासकार डा: सुभाष परिहार के मुताकि इसका निर्माण यूरोपियन वास्तुशैली के मुताबिक किया गया है। वहीं गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के आर्किटेक्टचर विभाग के प्रोः संदीप कुमार का कहना है कि यह इमारत लगभग सौ साल से अधिक पुरानी है। प्रो: संदीप के मुताबिक किसी भी इमारत के निर्माण में तत्कालीन भौगोलिक स्थितियों को ध्यान में रखा जाता है। लाल कोठी के निर्माण में भी इन्हीं चीजों को ध्यान रखा गया है। पहला यह कि इसकी दोनों मंजिलों की दीवारें काफी उंची और मोटी हैं। जबकि इनमें लगाए गए झरोखे जालिदार और पक्की मिट्टी के हैं जो मुगलकालीन वास्तुशैली को दर्शाते हैं, वहीं इसकी छत बनाने में प्रयोग किया गया तरीका ब्रिटिस आर्किटेक्चर को दर्शाता है।
मिट्टी, गोबर और भूषा के मिश्रण के किया गया है कमरों का प्लास्टर
प्रोः संदीप के मुताबिक ब्रिटिस काल में जिन इमारतों का निर्माण किया जाता था वह काफी ऊंची होती थीं और दीवारों पर गोबर, मिट्टी व भूषे का मिश्रित लेप लगार प्लाटर किया जाता था, ताकि बाहर के तापमान से कमरों के अंदर के तापमान को कम रखा जाय। इन दोनों चीजों का लाल कोठी के निर्माण में ध्यान रखा गया है। इसके वजह से सर्दी और गर्मी में कोठी के कमरों का तापमान नियंत्रित रहता है।
सवा सौ साल बाद भी आभा बिखेर रही हैं इटैलियन टाइलें
चारों तरफ से मेहराबदार बरामदों के मध्य बनी इस भव्य कोठी के फर्श व दीवरों पर लगाई गई इटैलियल टाईल्स जो अपने निर्माण के सौ साल से भी अधिक समय के बावजूद अपनी आभा विखेर रही हैं। कोठी के फर्स पर काले और सफेद रंग के संगमरमर के टुकडे इस तरह से लगाए गए हैं जैसे सतरंज की बिसात बिछाई गई हो।
दरवाजों की भूल भुलैया है लाल कोठी
अगर लाल कोठी के अंदरुनी हिस्से की बात करे तों इसमें करीब दस कमरे, दो बड़े बरामदे और एक मेहराब है। लाल कोठी के कमरों के दिवारों पर की गई आयल पेंटिंग भितिचित्र का उम्दा उदाहरण है। लाल कोठी में बने कमरों की खासियत यह है कि किसी एक कमरे में प्रवेश करने के बाद ग्राउंडफ्लोर पर बने सभी कमरों में जाया जा सकता है। या यूं कहें कि इस कोठी दरवाजों की भूल भुलैया है। जबकि छत पर बनाई गई दो बुर्जियां इसके वैभव की गाथा सुना रही हैं।
शाम ढलते ही लाल कोठी में सजती थी महफिल
अमृतसर के इतिहास को जानने वालों का कहना है कि लाल कोठी के मालिक रामचंद्र कपड़े वाला को शराव और शबाब का बहुत शौक था। शाम ढलते ही लाल कोठी में महफिल सजती थी। जैसे-जैसे ढलती शाम स्याह होती जाती, वैसे वैसे रामचंद्र शराब के आगोश में खोता चला जाता और मुजरे की महफिल अपने पूरे शवाब पर होती। मुजरे की महफिल में शहर के रायजदाओं से लेकर बड़े-बड़े अंग्रेज अधिकारी भी शामिल होते और यह मफिल रात के चौथे पहर की दस्तक देने तक जारी रहती।
और शराब के प्याले में डूब गई कोठी
कहा जाता है कि अपने शराब और शवाब के इसी शौक के चलते रामचंद्र ने एक ऐसी पेंटिंग बनवाई थी, जिसमें लाल कोठी को शराब के प्याले में डूबते हुए दिखया गया था। भले ही राम चंद्र ने अपने इस शौक को पूरा करने के लिए यह चित्र बनवाया हो पर सच में उसके सपनों का महल लाल कोठी शराब के प्याले में हमेशा के लिए डूब गई । यानि साहुकार अब पूरी तरह कर्जदार हो चुका था। अपने कर्ज को उतारने के लिए राम चंद्र ने अमृतसर के सब्जी व्यापारी लाली साह के हाथों लाल कोठी बेच दी।
फिर बिकी लाल कोठी
कहा जाता है कि कुछ दिन तक लाली शाह की मल्कियत रही लाल कोठी उसके हाथ से भी निकल गई। अबकी बार इस कोठी को लाली शाह नहीं बल्कि उसकी बहु राजकुमारी मेहरा पत्नी दुर्गादास मेहरा ने श्री गांधी आश्रम के प्रबंधकों के हाथ बेच दिया।
और गांधी आश्रम खरीदा लाल कोठी
गांधी आश्रम से रिटायर्ड आडिटर टीपी आचार्य कहते हैं इस कोठी को संस्था के सेक्रेटरी मेहशचंद्र तिवारी और निदेशक रामसुमेर उपाध्याय ने 1984-85 में 7 लाख 20 हजार रुपये उस समय खरीदा जब पंजाब में आतंकवाद का दौर था। आतंकवाद के काले दिनों में विनोवाभावे व आयार्च जेवी कृपलानी के सानिध्य में नो लास नो प्राफिट के सिद्धांत पर काम करने वाली खादी की संस्था श्री गांधी आश्रम ने अमृतसर जिले के सैकड़ों लोगों को रोजगार दिया। अब यहां घुंघरुओं की झंकार की जगह ‘रघुपति राघव राजा राम’ भजन के साथ चरखे की आवाज सुनाई देने लगी। यही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में खादी ग्रामोद्यग मंत्री रहे संघप्रिय गौतम सहित कई खादी प्रेमी हस्तियां भी यहां आ चुकी हैं।
लाल कोठी में अक्सर होती रहती हैं फिल्मों की शूटिंग
लाल कोठी की प्रसिद्धि और वैभव इतना है कि इससे प्रभावित हो कर कई हिंदी और पंजाबी शूटिंग हो चुकी है। इमें ऋषि कपूर व रेखा अभिनित फिल्म सदियां, अमृसरिये और अभी हाल ही में संजयदत्त अभिनित हिंदी फिल्म की शूटिंग के अलावा कई पंजाबी व टेली फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है।
घरोहर के रूप में संभालने की मांग
लालको कोठी की महत्ता को देखते हुए हिंदू सभा प्रोः अविषेक, प्रोः वलविंदर सिंह, प्रोः संदीप सहित कई लोगों का कहना है कि यदि इस कोठी को हैरिटेज होटल का दर्जा दे दिया जाय तो इस कोठी की मियाद बढने के साथ-साथ निगम की आय भी बढ़ सकती है। साथ गांधी आश्रम से प्रबंधकों से लाल कोठी को सहेजने की मांग की जा रही है।