Home उत्तर प्रदेश 15 दिन तक पाकिस्तान के कब्जे में रहे भारत के ये दो गांव, फिर जो हुआ बन गया इतिहास

15 दिन तक पाकिस्तान के कब्जे में रहे भारत के ये दो गांव, फिर जो हुआ बन गया इतिहास

by Jharokha
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These two villages of India remained under the control of Pakistan for 15 days, what happened next became history

भारत-पाकिस्तान अमृतर: बांग्लादेश की आजादी को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सन् 1971 की जंग को आज 53 साल हो गए हैं। इस जंग में बलिदान हुए  2 सिख रेजिमेंट के नौ जवानों के बलिदान से सिंचित गांव पुल मोरां (पुल कंजरी) आज भी उनके अद्मय साहस और शौर्य की याद दिलाता है।

पुल मोरां भारत-पाक सीमा पर स्थित एक छोटा सा गांव हैं। इसे भारत का अंतिम गांव भी कह सकते हैं। यहां से पाकिस्तान की मस्जिदों में होने वाले मगरीब (सूर्यास्त के समय पढ़ी जाने वाली नमाज के दी जाने वाली आवाज) की अजान साफ सुनाई देती है। सीमा से सटे इस गांव में स्थित है 2 सिख रेजिमेंट के उन नौ जवानों की याद में बनाया गया वार मेमोरियल,जो उन्मादी पाकिस्तानी सेना के सामने दीवार बन कर खड़े हो गए थे। या यूं कहें कि सारागढ़ी के सैनिकों की तरह इन नौ जाबांज सैनिकों ने न केवल पाकिस्तानी सेना को रोका बल्कि अपनी खोई हुई जमीन भी वापस ली और यहां पर भारतीय ध्वज फिर से लहराया।

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यह वह जगह जहां 3-4 दिसंबर की रात पाकिस्तानी फौज ने हमला कर दिया। चार दिसंबर को सीमा चौकी खाली करने का आदेश दिया गया। पाकिस्तानी सेना गांव पुल मोरां तक आ पहुंची और इस जगह को अपने कब्जे में ले लिया। भारत के ये दो गांव पुल कंजरी और मीरां कोट 15 दिन तक पाकिस्तान के कब्जे में  रहे। लेफ्टिटिनेंट कर्नल पुरी के नेतृत्व में सीओ 2 सिख रेजिमेंट के 40 बहादुर जवानों पाकिस्तान के पंजाब रेजीमेंट के सैनिकों का डटकर सामना किया। यह जंग करीब 20,000 घंटे तक चली। इस जंग में पुल मोरां या पुल कंजरी के मोर्चे पर एक सीओ सहित अलग-अलग रैंको के नौ जवानों ने वीरगति को प्राप्त किया। पाकिस्तानी फौज ने चार जवाबी हमले किए जिसे सिख रेजिमेंट की जवानों ने नाम कर दिया और अंतत: 17 दिसंबर को युद्ध विराम से पहले इस चौकी पर फिर से कब्जा कर लिया। उल्लेखनीय है कि सन 1971 के युद्ध के समय पुलकंजरी सीमा चौकी पर 2 सिख रेजिमेंट और 27 बीएसएफ बटालियन की एक-एक टुकड़ी का कब्जा था।

    कैसे और कब शुरू हुई जंग

गांव घनोए कलां के रहने वाले 65 वर्षीय गुरमुख सिंह और सरपंच अवतार सिंह कहते हैं कि वैसे से तो यह जंग पूर्वी पाकिस्तान ( आज का बांग्लादेश) को लेकर हुआ था। पाकिस्तान ने भारत पर यह जंग थोपा था।  गुरमुख सिंह कहते हैं कि हमें अच्छी तरह से याद है दिसंबर का महीना था सर्दी अपने चरम पर थी।  यही कोई तीन या चार तरीख रही होगी। पहले से तैयार बैठी पाकिस्तानी सेना ने शाम के समय भारत पर हमला कर दिया।

सरपंच अवतार सिंह कहते हैं कि यह हमला अप्रत्याशित था। वे बताते हैं कि तब बीएसएफ की दो चौकियां होती थीं। एक फार्वर्ड पोस्ट और दूसरा हेडक्वार्टर। वहां टावर पर एक शशी नाम का बीएसएफ का जवान निगरानी कर रहा था। उस जवान ने पाकिस्तानी सैनिकों की हलचल देखी और इसकी सूचना अपने अधिकारियों को दी। कुछ ही देर में गांव ठठा, जो की पाकिस्तान में सीमा पर स्थित है।  इस गांव को पार करते ही पाक सैनिकों ने फायरिंग शुरू कर दी। कुछ देर तक बीएसएफ ने मोर्चा संभाला इसके बाद उन्होंने फावर्ड चौकी खाली दी।  चौकी खाली होते ही पाकिस्तानी सैनिक पुल मोरां (पुल कंजरी) तक आ पहुंचे और उसे अपने कब्जे में लिया। गुरुमुख सिंह बताते हैं कि पुल मोरां के अलावा पाकिस्तानी सैनिकों ने अजलना तहसील के गांव मीरा कोट को भी अपने कब्जे में ले लिया था। और यहां पाकिस्तानी झंडा लहराने लगता था।

गुरुद्वारा साहिब में छिप गए थे गांव पुल कंजरी के लोग

शहीदी स्मारक की देख रेख करने वाले गांव मोरां के ही रहने वाले सत्पाल सिंह कहते हैं कि उस समय हमारी उम्र 10-12 साल की रही होगी। जब पाकिस्तान ने भारत  पर हमला किया था। हमला चूंकी दिन ढलने के समय हुआ था तो इस गांव के लोग गुरुद्वारा साहिब में छिप गए थे। दोनों तरफ से गोलियां चल रही थी। यह जगह पाकिस्तान के कब्जे में आ गया। गांव लोगों को सुबह गुरुद्वारा साहिब से निकाल कर सुरक्षित स्थान पर भेजा गया।

इसी तरह गांव के 50 वर्षीय अजीत सिंह बताते हैं कि जब पाकिस्तान ने हमला किया उसम वह अपने पिता के साथ पास के गांव में गेहूं पीसवाने गए हुए थे। वह उधर ही फंस गए । यह जंग करीब 14 दिन तक चली थी।

13 दिनों तक पाकिस्तान के कब्जे में रहा पुलकंजरी और मीरा कोट

पाकिस्तानी सीमा पर स्थित पुलकंजरी और मीरा कोट 14 दिनों तक पाकिस्तान के कब्जे में  रहा। इन जगहों पर दोनों सेनाओं के बीच जंग होती रही। हलांकि पुल मोरा को 2 सिख रेजीमेंट के जवानों ने पहले ही खाली करा लिया था, लेकिन मीरां कोट पूरी तरह पाकिस्तान के कब्जे में।  पुलक कंजरी या मोरां गांव में पाक सेना ने जहां भारी तबाही मचाई वहीं मीरां कोट के गांव को जमकर लूटा।

2 सिख रेजिमेंट के 20 बहादुर जवानों ने खेाला मोर्चा

पाकिस्तानी फौज पुल कंजीरी से आगे बढ़ती कि उन्हें 2 सिख रेजीमेंट के 20 जवानों ने रोक लिया। यहां पर इन जवानों ने मोर्चा खोल दिया और भारी तबाही मचाई । लेकिन इनमें से नौ सैनिक शहीद हो गए। ये सभी नौ सैनिक अमृतसर, संगरूर,तरनतारन, लुधियाना और नवांशर जिले के रहने वाले थे। इन सैनिकों ने जहां आज शहीदी स्मारक बना हुआ है वहीं एक पीपल के पेड़ के नीचे एक घर से मिट्टी दीवार में छेद कर अपनी एलएमजी से पाक सैनिकों को निशाना बना शुरू कर दिया।

इन सैनिकों में सिंगारा सिंह ने अद्मय साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों के दो मशीनगन छीन कर उन्हीं पर वार कर दिया। कई पाकिस्तानी सैनिकों खेत कर दिया। इस दौरान उनके पेट में संगीन लगने से वह शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानिक किया,जबकि ज्ञान सिंह को वीर चक्र मिला।

एक अधिकारी और 14 पाकिस्तानी सैनिकों को बनाया युद्ध बंदी

ग्रामीणों और बीएसएफ के अधिकारियों के अनुसार 17 दिसंबर की रात पंजाब रेजिमेंट के जवानों ने सिंगारा सिंह और ज्ञान सिंह के नेतृत्व में 9 जवानों ने बारूदी सुरंग के बीच से होते हुए 17-18 दिसंबर की रात पाकिस्तानी सेना पर हमला कर दिया। इस हमले में सिंगारा सिंह और ज्ञान सिंह सहित सभी नौ जवान विरगति को प्राप्त हो गए। फल स्वरूप भारीय सेना ने पुल कंजरी चौकी को पाकिस्तानी सेना से मुक्त करवाया, हलांकि पाकिस्तान ने 43 पंजाब रेजिमेंट की एक कंपनी, 15 पंजाब रेजिमेंट की दो कंपनियों का उपयोग कर पुलकंजरी गांव पर दोबारा कब्जा करने की कोशिश की, जिसमें वह नाकाम रहा। इसकी जवाबी कार्रवाई में सिख रेजिमेंट के सैनिकों में पाकिस्तानी पंजाब रेजिमेंट को न कवल भारी नुकसान पहुंचाया, बल्कि 43 पंजाब के एक अधिकारी, 8 ओआर और 15 पंजाब के 4 ओआर को बंदी बना लिया।

 नौ जवान और दो सिविलियंस हुए बलिदान

इस जंग में 2 सिख रेजिमेंट के नौ जवान और गांव धनोए कलां की दो महिलाओं ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। वीरगति पाने वाले में महावीर चक्र विजेता चोहला साहिब जिला तरनतारन के रहने वाले सिंगारा सिंह (मरणों परांत), शौर्य चक्र विजेता ज्ञान सिंह (मरणोंपरांत), स्वर्ण सिंह,संगरूर के लांस नायक गुरदयाल सिंह,सिंह,साहनेवाल लुधियाना के दिदार सिंह,सिंह,गांव झंडा लुबाना जिला गुरदासपुर के सुरजीत सिंह,गांव बंडाला जिला अमृतसर के तरलोक सिंह,सिंह,गांव रुरेवाल सरहाली जिला अमृतसर के जगतार सिंह,लुधियाना के गुरबचन सिंह और नवांशहर जिले के गांव पूनिया निवासी शौर्य चक्र विजेता मरणोंपरांत ज्ञान सिंह नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है।

जिस माह थी जन्मतिथि, उसी माह पाई वीरगति

दिसंबर 1971 की जंग में जिन नौ जवानों ने वीरगति पाई, उनमें से कुछ जवानों की जन्मतिथि अगस्त को कुछ जवानों की दिसंबर में थी। इनमें तिथि दो जवानों ने अपनी जन्मतिथि 11 और 17 नवंबर तो दो जवानों ने 30 नवंबर को मनाई थी, जबकि गुरबचन सिंह की 16 दिसंबर को 28 साल के हुए थे और17 दिसंबर 1971 को मातृ भूमि पर बलिदान हो गए।

बलिदान होने वाले जवानों की उम्र 28 से 18 वर्ष

1971 की जंग में पुल कंजरी में बलिदान होने वाले सभी नौ जवानों की उम्र 29 से 18वर्ष थी। इनमें एक जवान शौर्य चक्र विजता ज्ञान ही ऐसे सैनिक थे जिनकी उम्र 37 साल थी। और महावीर चक्र विजेता सिंगारा सिंह की आयु 26 वर्ष थी। इनमें एक सैनिक जगतार सिंह जिसने 16 दिसंबर को अपनी 18वीं जन्मीतथि मनाई थी और और17 दिसंबर को बलिदान होगया। सन 1971 की जंग पर जब जब इतिहास लिखा जाएगा तब तक पुलकंजरी के इन नौ बलिदानियों की शौर्य गाथा स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएगी।

15 अगस्त और 17 दिसंबर को लगता है मेला

‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा’इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए गांव पुल मोरां  (कंजरी) में शहीदों की याद में मेले का आयोजन किया जाता है। एक मेला 15 अगस्त को ग्राम पंचायत धनोएकलां की ओर लगाया जाता है और दूसरा 17 दिसंबर को वार मेमोरियल पर लगाया जाता है। 17 दिसंबर को आयोजित होने वाले मेले में शहीद सैनिकों के स्वजनों को बुलाया जाता है और उन्हें सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा 2 सिख रेजिमेंट और बीएसएफ के अधिकारी भी शामिल होकर बलिदानी जवानों रीच चढ़ाते हैं और उन्हें सम्मानित करते हैं।

 

Jharokha

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