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पितृ पक्ष चल रहा है, जो आमावश्या को पितृ विसर्जन के साथ संपन्न हो जाएगा। पितरों Pitru के तर्पण को लेकर कई तरह की भ्रांतियां होती हैं, वह भी उन परिवारों में जिनके घरों में तर्पण करने वाला को पुरुष न हो। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महिलाएं पितरों का तर्पण कर सरकती हैं। वैसे तो महिलाओं का श्राद्ध कर्म करना निषिद्ध माना गया है, लेकिन विषम परिस्थितियों में हमारे धर्मशास्त्रों ने महिलाओं के लिए तर्पण की व्यवस्था की है। वह भी विवाहित महिलाओं तर्पण का अिधकार प्राप्त है। इसका उल्लेख मनुस्मृति, सिंधु ग्रंथ, मार्कंडेय पुराण व गरुड़ पुराण में भी किया गया है। यहां तक कि श्री वाल्मीकि रामाण में भी बोध गया में फल्गू नदी के किनारे भगवान श्री राम के न होने पर महाराज दशरथ के तर्पण करने का उल्लेख किया गया है।
पं: दयाशंकर चतुर्वेदी श्री मार्कंडेय पुराण की उल्लेख करते हुए कहते हैं कि अगर किसी का पुत्र न हो तो उस व्यक्ति की पत्नी बिना मंत्रों के ही तर्पण और श्राद्ध कर्म कर सकती है। पं: दयाशंकर कहते हैं कि मार्कंडेय पुराण में यह व्यवस्था दी गई है कि अगर पत्नी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति की ओर से श्राद्ध कर्म किया जा सकता है। अगर कभी ऐसी स्थिति बनती है कि परिवार और खानदान में कोई पुरुष न हो तो सास का पिंडदान भी बहू कर सकती है। वे कहते हैं गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि अगर परिवार में कोई वृद्ध महिला है तो युवा से महिला से पहले तर्पण करने का अधिकार उसका होगा।
सफेद या पीले वस्त्रों में महिलाएं कर सकती हैं श्राद्ध
पंडित नंद किशोर मिश्र कहते हैं कि श्राद्ध कर्म करने का अधिकार केवल पुरुषों को है, लेकिन विषम परिस्थितियों में हमारे धर्म शास्त्रों में महिलाओं को तर्पण का और श्राद्ध कर्म करने का अधिकार प्रदान किया हुआ है। वे कहते हैं कि केवल विवाहित महिलाएं श्राद्ध के लिए पीले या सफेद रंग का वस्त्र पहन कर ही यह कर्म कर सकती हैं। तर्पण का अधिकार केवल विवाहित महिलाओं को ही है। पं: नंद किशोर के अनुसार श्राद्ध करते समय महिलाओं को भूल कर भी कुश, जल और काले तिल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए।
वाल्मीकि रामायण में है सीता द्वारा पिंडदान करने का उल्लेख
पं: आत्म प्रकाशा शास्त्री के अनुसार माता सीता द्वारा महाराज दशरथ का पिंडदान करने का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। शास्त्री के अनुसार में वनवास के समय जब भगवार श्री राम पतृ पक्ष Pitru paksha में गया पहुंचे तो वह पिता के श्राद्ध के लिए कुछ सामान लेने गए, इसी दौरान श्री राम की भार्या सीता को महाराज दशरथ के दर्शन हुए, जिन्होंने पिंडदान को कहा। पति और देवर की अनुपस्थित में सीता ने केतकी के फूल, गाय, ब्राह्मण, फल्गू नदी और वटवृक्ष को साक्षी मान कर रेत का पिंड बना कर महाराज दशरथ का पिंडदार कर उनकी आत्मा को प्रसन्न किया।
गरुड़ पुराण ने भी दी है महिलाओं द्वारा पिंडदान करने की व्यवस्था
साध्वी आत्मज्योति के अनुसार गरुड़ पुराण में भी पुत्र या पति के न होने पर श्राद्ध कर्म करने की व्यवस्था दी गई है। इसके बताया गया है कि कौन किन परिस्थितियों में श्राद्ध कर्म कर सकता है। आत्मज्योति कहती हैं कि गरुड़ पुराण के 11वें अध्याय में बताया गया है कि बड़े या छोटे पुत्र के अभाव में बहू या पत्नी को श्राद्ध कर्म करने का अधिकार है। इसके अलावा बड़ी बेटी या एकलौती बेटी भी अपने पिता का श्राद्ध कर्म कर सकती है।
आत्मज्योति कहती हैं कि अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई या भतीजा,भांजा, नाती या पोत्रा इनमें से कोई भी श्राद्ध कर्म करने का अधिकारी है। वे कहती हैं दुभार्ग्य से यदि इनमें से भी यदि कोई नहीं है तो मित्र, शिष्य, रिश्तेदार या कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर्म करने का हकदार है।