
सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा, चमके गंगा घाट
सिद्धार्थ/समीर
नीले गगन में लालीमा लिए अस्ताचलगामी सूर्य, गंगा घाट पर टिमटीमाते छोटे-छोटे दीपों का समूह, कमर तक पानी में करबद्ध खड़ी महिलाओं और पुरुषों का समूह और छठ के पारंपरिक गीतों समवेत स्वरों में घुल-मिल कर प्रकृति कौर सुगंधित और तन-मन को प्रफुल्लित करता करर्पूर और धूप-दीप से उठने वाली सुगंध। यह है छठ पूजा का अलौकिक दृश्य। यह दृश्य 30 अक्टूबर रविवार को नदी, नहरों और तालाबों के किनारे देखा जा सकता है जहां छठ व्रती सूर्य उपासना और आराधना कर रहे होते हैं।
सूर्य की आराधना और उपासना की परंपरा दुनियाभर में वैदिक काल से चली आ रही है। या यूं कहिए कि मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही प्रकृति की पूजा शुरू हो गई थी। देखा जाए तो प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना ही सनातन धर्म का मूल है।
छठ व्रत में मुख्यत: सूर्य की उपासना और आराधना की की जाती है। मान्यता है कि सूर्य उपासना का यह पर्व मगध यानी आज के बिहार से शुरू हुआ था। जो व्यापक रूप लेता जा रहा है। आज छठ पूजा झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल के तराई क्षेत्रों में तो मनाया ही जाता है इसके साथ ही दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। या यूं कही लीजिए कि बिहार के लोग जहां-जहां गए अपनी लोक आस्था को साथ लेते गए और छठ पूजा को एक व्यापक रूप दे दिया। अब छठ पूजा क्षेत्र और राष्ट्र की सीमाओं को लांध पश्चिमी देशों में भी पहुंच चुका है।
कैसे और कब हुई छठ पूजा की शुरुआत
यह चंद्र के छठे दिन काली पूजा के छह दिन बाद छठ मनाया जाता है। लोक मान्याताओं के अनुसार बिहार के मुंगेर से हुई थी। मुंगेर जिले में सीता मनपत्थर जिसे सीता चरण भी कहा जाता है। यह मंदिर मुंगेर में गंगा के बीच में एक चट्टान पर स्थित है। माना जाता है कि माता सीता ने सबसे पहले मुंगेर में छठ पर्व मनाया था और यहीं से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई थी। माता सीता मिथिला की थीं, इसलिए मिथिलांचल में छठ को रनबे माय भी कहा जाता है और यह पर्व वहां जोरशोर मनाया जाता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार पहले देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में रनबे (छठी मैया) अपनी पुत्री की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी।
सूर्य पूजा की उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। कहा जाता है मगध नरेश ने भी कुष्ठ रोग दूर करने के लिए सूर्य की उपासना की थी। कर्ण की सूर्य उपासना के बारे में प्राय: हर कोई जानता है कि वह घंटों कमर तक जल में खड़े रह कर सूर्य की आराधना और उपासना करते और अर्घ्य देते थे। यह आज भी छठ पूजा के दिन देखा जा सकता है। यह पर्व मुख्यः रुप से ॠषियों द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के मनाया जाता है।
संध्या और प्रात: काल में क्यों की जाती है पूजा
छठ पूजा में जो मुख्य तत्व है वह यह कि इसमें अस्त और उदय यानी संध्या और प्रात: काल में सूर्य की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त रूप से आराधना की जाती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण जिसे प्रभात या ऊषा और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण जिसे प्रत्यूषा कहा जाता है, को अर्घ्य देकर दोनों का नमन करते हुए व्रत का समापन किया जाता है।
सूर्य उपासना का मंत्र
पं: नंद किशोर मिश्र और दया शंकर चतुर्वेदी कहते हैं कि सूर्य को अघ्य देते समय-
ॐ मित्राय नम:, ॐ रवये नम:, ॐ सूर्याय नम:, ॐ भानवे नम:, ॐ खगाय नम:, ॐ घृणि सूर्याय नम:, ॐ पूष्णे नम:, ॐ हिरण्यगर्भाय नम:, ॐ मरीचये नम:, ॐ आदित्याय नम:, ॐ सवित्रे नम:, ॐ अर्काय नम:, ॐ भास्कराय नम:, ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम: मंत्र का जाप करें।
प्रकृति को समर्पित है छठ पर्व
छठ पूजा सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित है। छठ षष्ठी शब्द का अपभ्रंश है। छठ पूजा पूरी तरह से प्रकृति को समर्पित है। इसके लिए जल का होना आवश्यक है। मुख्य रूप से छठ पूजा नदी, नहर या तालाब के किनारे की जाती है। यदि ऐसा संभव न तो तो घर के आंगन में किसी बडे़ पात्र में शुद्ध जल भर कर भी सूर्य की उपसना की जा सकती है। अगर प्रसाद की बात करें तो इसमें पांच गन्ने जिसमें पत्ते लगे हों, पानी वाला नारियल, अक्षत, पीला सिंदूर, दीपक, घी, बाती, कुमकुम, चंदन, धूपबत्ती, कपूर, दीपक, अगरबत्ती, माचिस, फूल, हरे पान के पत्ते, साबुत सुपाड़ी, शहद का भी इंतजाम कर लें. इसके अलावा हल्दी, मूली और अदरक का हरा पौधा, बड़ा वाला मीठा नींबू, शरीफा, केला और नाशपाती की भी जरूरत पूजा के लिए पड़ती है. इनके अलावा शकरकंदी और सुथनी लेना न भूलें. मिठाई, गुड़, गेंहू और चावल का आटा और शुद्ध घी का होना आवश्यक है।
वैज्ञानिक महत्व
छठ पर्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो षष्ठी तिथि को एक विशेष खगोलीय परिवर्तन होता है। इस समय सूर्य की पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता है तो पहले वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है। पृथ्वी की सतह पर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ होता है।
छठ के पारंपरिक गीत
छठ के दौरान गाए जाने वाले लोक गीत भी पूरी तरह से प्रकृति को समिर्पत होते हैं। यह बात की जाए आधुनिक परिवेश में इसके कारोबार की तो हर साल छठ के भोजपुरी गीतों के करोड़ों के आडियो और वीडियो केसेट बिकते हैं। छठ पर गाये जाने वाले प्रचलित भोजपुरी मुख्य है-
- ‘केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय
- काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’
- सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।
- उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
- निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।
- चार कोना के पोखरवा
- हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।