
आम तौर पर असयोग आंदोलन की शुरूआत बंगाल विभाजन के प्रस्ताव के विरोध में 7 अगस्त 1905 से माना जाता है, जिसकी शुरूआत कलकता के टाउनहाल से महात्मागांधी के आह़वान पर विदेशी वस्त्रों के वहिष्कार से हुई थी। लेकिन बंगभंग के विरोध में शुरू होने वाले इस आंदोलन की नींव लगभग 40 साल पहले पंजाब में नामधारी सिखों के गुरु सतगुरु नाम सिंह द्वारा 1865 में रखी दी गई थी।
डॉक्टर इंद्रजीत सिंह गोगवानी कहते हैं नामधारी सिखों का आंदोलन इतना सशक्त था कि ब्रिटिस हुक्मरान डरने लगे थे। उन्होंने अपने दस्तावेजों में नामधारी सिखों को बर्तानवी हुकूमत के लिए घातक बताते हुए कुक्स शब्द का प्रयोग किया जो आगे चल कर कूका के नाम से जाना जाने लगा।
गांधी से पहले सतगुरु राम सिंह ने चलाया था स्वदेशी आंदोलन
गुरबचन सिंह नामधारी ना मिलवर्तन लहर के संबंध में लिखते हैं कि महात्मा गांधी से लगभग चार दशक पहले सतगुरु राम सिंह ने असहयोग आंदोलन छेड दिया था। इस आंदोलन के तहत नामधारी सिखों ने अंग्रेजों की न केवल रेल व डाक सेवा का बहिष्कार किया था बल्कि उनके समानांतर अपने अदालतें भी लगाने लगे थे। वे लिखते हैं कि सतगुरु की डाक व्यवस्था इतनी अच्छी थी कि अंग्रेजों डाक से पहले उनकी चिटि्ठयां लोगों तक पहुंच जाया करती थीं। यही नहीं आंदोलन कारियों में अंग्रेजों खिलाफ इतनी लहर थी कि वे न तो अंग्रेजों के लगाए दरख्तों की छांव में बैठते थे और ना ही उस पेड से दातुन तोड़ते थे।
खादी के कपड़ों के भी सूत्राधार थे राम सिंह
इस संबंध में नामधारी संप्रदाय के सूबा अमरीक सिंह नामधारी कहते हैं सतगुरु राम सिंह जी ने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शंखनाद की बल्कि वह खादी के सूत्राधार भी थे। वे कहत हैं नामिलवर्तन लहर (विदेशी वस्तुओं का वहिष्कार) के सतगुरु के आह़वान पर लोगों ने विदेशी वस्त्रों सहित अन्य सामानों का वहिष्कार कर दिया था। इस दौरान लोग घर-घर में सूत कातना व कपडे़ बुनना शुरू कर दिया था, जिसे आगे चल कर महत्मा गांधी खादी को आजादी का हथियार बनाया।
भगत सिंह ने भी किया है उल्लेख
खालसा कॉलेज अमृतसर के प्रोफेसर डॉ: इंद्रजीत सिंह गोगवानी कहते हैं कि भगत सिंह ने भी 1928 में अपने दो लेखों पहला दिल्ली से प्रकाशित कीर्ति मासिक व लाहौर से निकलने वाले महारथी में सतगुरु राम सिंह का उल्लेख करते हुए लिखा है कि हमें स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए सतगुरु राम सिंह जैसा समर्पण चाहिए।