
Gobindgarh Fort, Amritsar अमृतसर। वैसे तो महाराजा रणजीत सिंह से जुड़े कई ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनका अपना पुरातात्विक महत्व है। इन्ही स्थलों में से एक है किला गोबिंदगढ़। इस किले की बूढ़ी हो चुकी दीवारें सिख साम्राज्य के उद्भव से लेकर पतन तक की गवाह रही हैं। यही नहीं इस किले के इतिहास का एक पन्ना हिमाचल प्रदेश के नूरपुर रियासत से जुड़ा हुआ है।
किला गोबिंदगढ़ का इतिहास
डा. हरीश शर्मा के मुताबिक हर वक्त पर्यटकों से गुलजार रहने वाले किला गोबिंदगढ़ को सन् 1760 से 1770 के दशक तक “गुजर सिंह किले” के रूप में जाना जाता था। मिट्टी और चूने से निर्मित इस किले पर उस समय भंगी मिसल के शासकों का शासन हुआ था।
1805 में बदला किले का नाम
डा: हरीश के मुताबिक शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह ने 1802 में गुजर सिंह किले (किला गोबिंदगढ़) Gobindgarh Fort पर हमला कर दिया। उस समय यहां का भंगी मिसल का शासक हरि सिंह हुआ करता था। प्रो: दरबारी लाल के मुताबिक सिख इतिहास में इस जंग को लोहगढ़ की जंग के रूप में जाना जाता है। इस जंग में हरी सिंह की बुरी तरह से हार हुई और वह रात के अंधेरे में जंग-ए-मैदान से पलायन कर गया। इस जंग में महाराजा के कमांडर हरि सिंह नलवा ने भाग लिया। लोहगढ़ की जंग में पांच बड़ी तोपों का प्रयोग किया गया।
इसमें से एक तोप जमजमा भी था, जिसे भंगियन दी तोप के नाम से जाना जाता था। प्रो: दरबारी लाल के अनुसार गुजर सिंह किले की फतह के करीब तीन साल बाद 1805 में महाराजा रणजीत सिंह ने इसका नाम बदल कर सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह के नाम पर “गोबिंद गढ़” रखा। किला फतह करने के बार महाराजा ने सरदार शमीर सिंह को किला गोबिंद बढ़ का पहला किलेदार नियुक्त किया और फकीर अजीजुद्दीन की देखरेख में किले की मरम्मत करवाई।
पहाड़ी राजा वीर सिंह को रखा सात साल कैद में
प्रो: दरबारी लाल और हरीश शर्मा के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने सिख साम्राज्य का विस्तार करते हुए 1826 में नूरपुर (हिमाचल प्रदेश) के राजा वीर सिंह की रियासत पर हमला कर दिया। इस जंग पहाड़ी राजा वीर सिंह की बुरी तरह से हार हुई। नूरपुर की जंग जीतने के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने सालाना कर लगा कर राजा वीर सिंह को नूरपुर का जागिरदार बनाना चाहा, लेकिन वीर सिंह ने न तो महाराजा को कर दिया और ना ही जागीर। अलबत्ता वीर सिंह ने रणजीत सिंह के खिलाफ बगावत कर दिया। इसके बाद महाराजा ने वीर सिंह को किला गोबिंदगढ़ में सात साल तक कैद रखा।
चंबा के राजा ने 85 हजार रुपये दे कर करवाया मुक्त
किला गोबिंदगढ़ में वीर सिंह के करीब सात साल तक कैद रहने के बाद चंबा के राजा चरहत सिंह ने महाराजा रणजीत सिंह को 85 हजार रुपये का कर चुका कर वीर सिंह को महाराजा की कैद से मुक्त करवा था। डा: हरीश शर्मा के अनुसार चंबा का राजा चरहत सिंह रिश्ते में वीर सिंह का बहनोई लगता था। डा: शर्मा के अनुसार वीर सिंह नूरपुर का अंतिम राजा था। क्योंकि सन 1839 में महाराजा रणजीत सिंह की मौत के अंग्रेजों ने 1846 में नूरपुर पर कब्जा जमा लिया।
(Gobindgarh Fort) किला गोबिंदगढ़ को अंग्रेजों ने बनाया आपराधिक जांच विभाग
प्रो: दरबारी लाल के अनुसार सिख साम्राज्य पर कब्जे के बाद किला गोबिंदगढ़ का नियंत्रण ब्रतानवी हुकूमत के पास आ गया। पंजाब पर कब्जे के बाद अंग्रेजों ने यहां पर आपराधिक जांच विभाग का कार्यालय भी स्थापित किया। इसी किले में जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार जनरडायर का निवास भी था, जिसने निहत्थे भारतीयों को गोलियां चलवाई थी। अब देश की आजादी के बाद इस किले के एक भाग भारतीय सेना की अभिरक्षा में है।