
हनीफ तांगे वाला, आज भी ढो रहे हैं परंपराओं की सवारी
संत कबीर नगर : शाही शान की सवारी कहा जाने वाला तांगा कई शहरों में विलुप्त हो गए हैं. आज के समय के लोगों ने फिल्मों में बेशक तांगों को देखा होगा। आज के बदलते समय में तांगे की जगह लोगों ने मोटर गाड़ियों ले ली है, पर संत कबीर नगर जिले में एक ऐसी जगह है जहां आज भी यात्रा करने के लिए तांगे का प्रयोग करते हैं। संत कबीर नगर जिले के रहने वाले हनीफ रोजी रोटी के लिए आज पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए सड़कों पर तांगा दौड़ाते हुए नजर आते हैं।
वैसे तो आपने फिल्म शोले में बसन्ती और अमिताभ बच्चन की फिल्म मर्द में अमिताभ बच्चन को तांगा दौड़ाते हुए देखा होगा लेकिन संत कबीर नगर जिले के बखीरा गांव के रहने वाले हनीफ पुरानी परंपरा को आज भी बरकरार रखे हुए हैं । तांगा चलाकर आज भी वह अपने परिवार की दो जून की रोटी चला रहे हैं। हर गली चौराहे में पहले घोड़े के टाप ही सुनाई देते थे। तांगे की सवारी ऊंचे परिवार के लोग अपनी शान मानते थे पहले इक्का तांगा की सवारी राजशाही सवारी मानी जाती थी। आधुनिकता की मार से अब इक्का-तांगा भी अछूता नहीं रहा, कभी शानो शौकत की सवारी कहे जाने वाले इक्का व तांगा आज भी युवा पीढ़ी ने आउट डेटेड कर दिया है।
सचमुच, लगता है इक्का-तांगा शब्द अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह जाएंगे। आपको बताते चलें कि संतकबीरनगर जिले के मेहदावल तहसील क्षेत्र बखीरा मे आज भी तांगे की सवारी लोग करते नजर आ रहे हैं। तांगा चालक हनीफ ने बताया कि आधुनिकता और महंगाई ने तांगा चालकों के सामने समस्या उत्पन्न कर दी है। घोड़ा गाड़ी में बैठने वाले सवारी के न मिलने से जहां तांगा चालक परेशान है। वहीं घोड़ों के लिए दो समय का चारा जुटाना भी इनके लिए समस्या बना हुआ है। हालात यह है कि तांगा चालक और घोड़े दोनों ही दाने-दाने को मोहताज हैं।
मीडिया से मोहम्मद हनीफ तांगा चालक ने अपने दर्द बयां करते हुए कहा कि साहब जब संसाधनों की कमी थी, उस समय लोग तांगें की सवारी को ही उत्तम मानते हुए सड़कों के किनारे खड़े होकर इक्के-तांगों का इंतजार किया करते थे। जैसे-जैसे समय का पहिया घूमा, लोग आधुनिक संसाधनों की ओर बढ़ने लगे। आधुनिकता के दौर के साथ तांगा चालकों के इक्के-तांगों पर चढ़ने का शौक रखने वालों का अभाव हो गया।