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History of Rajbhar: राजभर क्या राजपूत थे या जनजाति, सच्चाई जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर

History of Rajbhar: राजभर के बारे में कहा जाता है कि ये दक्षिण एयशिया के मूल निवासी हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा में राजभर जातियों की संख्या अच्छीखासी है। इस जाति को नाविकों या मल्लाहों की एक उपजाति के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। राजभर को भर, भार, भरत, भारत और भरपटवा जैसे कई उपनामों से भी जाना जाता है।

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राजभर की उत्पत्ति और जाति के बारे में कुछ इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन काल में राजभर की गिनती सभ्य, उच्च और श्रेष्ठ जातियों में की जाती थी। उनका मानना है कि करीब दो हजार साल पहले भारतवर्ष के पुण्य धरा नामक नगरी पर राजभर का शासन था। महाराजा सुहलदेव भी राजभर जाति से ही थे।

इतिहासकारों का मानना है कि शक और हूण जनजातियों ने जब उत्तर भारत पर आक्रमण करना शुरू किया तो राजभर जाति के लोगों ने हुणों का सामना किया और उन्हें भारत की सीमा से बाहर खदेड़ा। उनका मानना है कि विदेशी हमलावरों को देश की सीमा से बाहर खदेड़ने का भार ग्रहण करने के कारण इस जाति के लोगों को राजभर या भर कहा जाने लगा था।

राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक ‘सतमी के बच्चे’ में राजभर जातियों की उत्पत्ति के बारे में विस्तार से लिखा है। राहुल सांस्कृत्यायन के अनुसार ‘भर’ भारत की एक प्राचीन जाति है, जब आर्य करीब 2000 साल पहले भारत आए तो उसके पहले भर जाति का ही साम्राज्य था। यह जाति सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुंच चुकी थी जिसने हजारों राजमहल और सुदृढ़ नगर बसाए थे।

राहुल सांस्कृत्यायन की पुस्तक ‘सतमी के बच्चे’ के अनुसार भारत का नाम भर जाति से ही आया है। सिंधु सभ्यता के इस सभ्य जाति की एक शाखा उत्तर प्रदेश और बिहार में जब जाकर बसे तो भर नाम से प्रसिद्ध हुए। मध्यकालीन भारत में इन्होंने खुद के छोटे-छोटे कबीलों को स्थापित किया था। पूर्वी उत्तर प्रदेश में इनके छोटे-छोटे राज्य हुआ करते थे लेकिन, उत्तर मध्य काल में राजपूतों और मुगलों ने उन्हें वहां से विस्थापित कर दिया था। आर्य समाज आंदोलन से प्रभावित होकर, बैजनाथ प्रसाद अध्यापक ने 1940 में राजभर जाति का इतिहास नामक एक पुस्तक को प्रकाशित किया‌ था। इस पुस्तक में यह साबित करने का प्रयास किया गया था कि राजभर पहले शासक थे और इनका संबंध प्राचीन भर जनजाति से है।

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आर्यों के आने से पहले बलिया क्षेत्र में मौजूद थे राजभर

डा. ब्रह्मानंद सिंह ने अपनी पुस्‍तक बलिया का प्रारंभिक इतिहास में राजभर जातियों का उल्‍लेख करते हुए लिखते हैं कि गुप्‍त साम्राज्‍य के विघटन के बाद बलिया में जिन शक्तियों का उदय हुआ उनमें भर और चेरु प्रमुख थे। इनको बलिया का मूल निवासी भी बताया जाता है।
डा: सिंह अपनी पुस्‍तक में उल्‍लेख करते हैं कि भर जाति सिंधु सभ्‍यता की जननी थी और आर्यो के आने से पहले वह बलिया क्षेत्र में मौजूद थीं।

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद मजबूत भर जाति की स्थिति

जबकि बुकानन ने भर जाति को बिहार के पूर्णिया जिले में बसे हुए भांवर जाति के समकक्ष माना है। यही नहीं काशी प्रसाद जायसवाल ने अपनी पुस्‍तक ‘अंधेर युगीन भारत’ में राजभरों को भारशिववंश का क्षत्रिय माना है। डा: ब्रह्मानंद सिंह के अनुसार पांचवी सदी में गुप्‍त राजवंश का सूर्य अस्‍त होने के बाद भर जाति के लोगों ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली। फलत: वाराणसी और गाजीपुर के गंगा तटीय क्षेत्र में इनके बनाए भवनों के अनेक खंडहर आज भी दिखाई देते हैं। बलिया जिले का रसड़ा और बांसडीह का क्षेत्र भी राजभरों के प्रभाव में रहा।

अंग्रेजों के गजेटियर में भी है भर जातियों के जागिरों का उल्लेख

ए हसन व जेरी दास द्वारा संपादित ‘ पीपुल आफ इंडिया उत्‍तर प्रदेश वॉल्‍यूम xLll पार्ट वन’ के अनुसार राजभरों के अंतिम शासक को जौनपुर के सुल्‍तान इब्राहिम शाह शर्की ने मारा था। ए हशन के अनुसार उत्‍तर मध्‍यकाल में राजभरों के छोटे-छोटे कबिले स्‍थापित थे। पूर्वि उत्‍तर प्रदेश में इनके छोटे-छोटे राज्‍य थे जिनको मुगल व राजपूतों ने विस्‍थापित कर इनके राज्‍यों पर कब्‍जा कर लिया। डा: ब्रह़मानंद सिंह के अनुसार भर जनजातियों पर पश्चिम से आए राजपूतों ने धावा बोल दिया और उन्‍हें अपने अधीन कर छिन्‍न-भिन्‍न कर दिया। डा: सिंह कहते हैं कि अंग्रेजों के गजेटियर में भी राजभर जातियों और उनकी जागिरों का उल्लेख मिलता है।

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राजा सुहदवे ने मसूदसालार गाजी का किया था वध

अब बात करें मध्यकालीन भारत की तो 1026 में महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर खिवलिंग को खंडित कर दिया और सोमनाथ मंदिर की संपत्ति को लूट लिया। हमले में हजारों लोग मारे गए थे। इसके बाद महमूद गजनवी के सिपाहसालार सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने सारनाथ के बौध विहारों को ध्वस्त करते हुए गाधीपुरी पहुंचा और यहां के राजा मांधाता को परास्त कर “गाधीपुरी” में लूटपाट मचाया। गाधीपुरी को पूरी तरह से तबाह करने के बाद इसका नामकरण अपने नाम पर गाजीपुर किया। उस समय जब इसकी जानकारी श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव को हुई तो उन्होंने मसूदसालार गाजी का अंत करने का प्रण लिया। 11वीं शताब्दी के आरंभ में महाराजा सुहलदेव ने बहराइच में मुस्लिम आक्रमणकारी और ग़ज़नवी सेनापति सैयद मसूद सालार ग़ाज़ी को पराजित कर मार डाला था।

पूरे देश में 2.44% प्रतिशत है राजभरों की आबादी, पूर्वी यूपी 20 प्रतिशत

अब बात करें इनकी जनसंख्या की तो इनकी कुल आबदी 2.44% है। जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के । इसके अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, वाराणसी, अंबेडकर नगर व अयोध्या जिलों में राजभरों की आबादी सर्वाधिक 20 प्रतिशत से अधिक है। उत्तर प्रदेश में इन्हें OBC के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है। और इन्हें आरक्षण का लाभ दिया जाता है। राजभरों की मौजूदा स्थिति की बात करें तो ज्यातातर भूमिहीन हैं। कुछ खेतिहर मजदूर हैं तो कुछ छोटे किसान हैं। इनमें अधिकांश राजभर गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं।

 








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