
History of rajbhars: भारत, भारतीयता और हिंदू-धर्म के ध्वजा वाहक महाराजा सुहलदेव को कोई राजपूत तो कोई राजभर तो कोई पासी जाति से जोड़ता है। खैर यह तो है महाराजा पर जातियों के दावे । लेकिन, आज हम आप को महाराजा सुहलदेव के बारे में कुछ ऐसी बातें बताने जा रहे हैं, जिसे शायद ही आप जानते हों।
मिरात-ए-मसूदी के अनुसार महाराजा सुहलदेव का राज्य वर्तमान में उत्तर प्रदेश के श्रावस्ति और बहराईच जिले और उसके आसपास के क्षेत्रों में था और राजा मोर-ध्वज के बड़े बेटे थे । जबकि, अवध गजेटियर के अुसार महाराजा सुहलदेव का जन्म 990 में बसंत पंचमी के दिन बहराइच के शासक महाराजा प्रसेनजित के घर हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार 750 से 1200 ईसवी तक राजपूत काल माना गया है। यानी भारतीय इतिहास के गौरवशाली राजा पृथ्वी राज चौहान के जन्म से करीब 76 साल पहले सुहलदेव का जन्म हुआ था।
इतिहासकारों के अनुसार सालार मसूद गाजी और सुहेलदेव की जंग का जिक्र फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी में पाई जाती है। इस पुस्तक को मुगल शासक जहांगीर के शासनकाल के दौरान अब्द-उर-रहमान चिश्ती ने लिखी थी। अगर पौराणिक कथाओं की बात करें तो उसमें भी महाराजा सुहलदेव को श्रावस्ती और बहाइच का राजा बताया गया है। सुहलदेव को सकर-देव, सुहीरध्वज, सुहरी दिल, सुहरीदलध्वज, राय सुह्रिद देव, सुसज और सुहारदल सहित कई अन्य नामों से भी जाना जाता है। अब बात करें महाराजा सुहलदेव के शैर्य और पराक्रम की तो इन्हें मुस्लिम आक्रांता महमूद गजनवी और उसके भतीजे सैयद सालार मसूद गाजी का अंत कर हिंदू धर्म ध्वज फहराने के लिए जाना जाता है।
गाजी के नाम पर बना गाजीपुर
इतिहासकारों के मुताबिक सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी ने 16 वर्ष की आयु में हिंदूकुस दर्रा और सिंधु नदी को पार कर भारत पर आक्रमण किया। सैयद सालार मसूद गाजी सुल्तान दिल्ली, मेरठ होते हुए गाजीपुर तक आ पहुंचा । यहां राजा मांधाता को पराजित कर गाधीपुरी का नाम करण अपने उप नाम ‘गाजी’ पर गाजीपुर कर दिया और गंगा नदि के किनारे बने राजा मांधाता के किले को तहसनहस कर दिया जिसे आज कठउत की गढ़ी के रूप में जाना जाता है। यह जगह आज भी पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है।
हिंदू राजाओं को हराया था मसूद ने
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक सालार मसूद गाजी ने अपने सिपाह-सालार सैयद सैफ-उद-दीन और मियाँ राजब को बहराइच फतह करने को भेजा । बहराइच और उसके आस पास की छोटी-छोटी रियासतों के हिंदू राजाओं ने मुस्लिम आक्रांता को रोकने के लिए एक संघ का गठन किया लेकिन, मसूद के पिता सैयद सालार साहू गाजी और उसकी सेना हिंदू राजाओं के इस संघ को हरा दिया।
बहराइच और उसके आसपास के राज्यों को फतह करने के बाद सालार मसूद गाजी और उसकी सेनाओं ने नगरों को लूटना, वहां स्त्रियों के साथ दुष्कर्म करना और लोगों का कत्लेआम जारी रखा । कहा जाता है कि मसूद सालार सन् 1033 में खुद बहराइच आया।
गाजी के सीने में सुहलदेव ने गाड़ दिया अपना भाला
महमूद गजनवी के सोमनाथ मंदिर पर आक्रम कर वहां लूटपाट मचाने और भारत की स्मिता को चुनौनी देने वाले गजनवी के भतीजे मसूद सालार गाजी को रोकने के लिए श्रावस्ति के महाराजा सुहलदेव जंग-ए-मैदान में उतर आए । जिस मसूद सालार गाजी ने जिन हिंदू राजाओं को बार-बार हरबार हराया उस गाजी का अंत 1034 में बहराइच में महाराजा सुहदलदेव और उनकी सेना ने अंत कर दिया । कहा जाता है कि महाराजा सुहलदेव ने अपना भाला सीधे मसूद सालार गाजी के सीने में उतार दिया जिससे उसकी मौत हो गई।
सन 1940 में चर्चा में आए सुहलदेव
राजपूतकालीन इस महानायक का नाम चर्चा में तब आया जब, 1940 में बहराइच के एक शिक्षक ने महाराजा सुहलदेव पर एक लंबी काव्य रचना की । उन्होंने अपनी कविता में महाराजा सुहेलदेव को जैन राजा और हिंदू संस्कृति के उद्धारकर्ता के रूप में निरुपित किया । इससे पहले राहुल सांस्कृत्या-यन ने भी महाराजा सुहलदेव का उल्लेख ‘सतमी के बच्चे’ में किया है। इसी तरह आर्य समाज, राम राज्य परिषद और हिंदू महासभा ने महाराजा सुहेलदेव को हिंदू नायक के रूप में प्रतष्ठित किया। अप्रैल 1950 में इन संगठनों के संघर्ष और दो हजार से अधिक लोगों गिरफ्तारियों के बाद बहराइच में करीब 500 बीघा भूमि पर कई चित्रों और मूर्तियों के साथ सुहेलदेव का एक मंदिर बनाया गया था।
सुहलदेव पर शुरू हुई सियासत
अब बात करते हैं राजनीति की । इतिहास के इस महानायक की लोक प्रियता को भुनाने के लिए 1950 और 1960 के दशक में राजनीति शुरू हो गई । वहां के स्थानीय राजनेताओं ने महा प्रतापी माहाराजा सुहेलदेव को पासी जाति का बताना शुरू कर दिया। पासी एक दलित समुदाय है और बहराइच के आस-पास एक महत्वपूर्ण वोटबैंक भी है। वोट बैंक की राजनीति इतनी तेज हुई कि धीरे-धीरे पासी समाज ने महाराजा सुहेलदेव को अपनी जाति के सदस्य के रूप में महिमा मंडित करना शुरू कर दिया।
बसपा और सपा ने भी भुनाया, सुभसपा के ओमप्रकाश बने झंडाबरदार
यही नहीं जातियों की राजनीति को आगे बढ़ाते हुए बहुजन समाज पार्टी ने दलित मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए महाराजा सुहेलदेव इस्तेमाल किया। अब भला इस सियासत में भाजपा और सपा कहां पीछे रहे वाली थी, उन्होंने भी दलितों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए उस महाराजा सुहलदेव का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू कर दिया, जिन्होंने जाति को नहीं जिन्होंने हिंदू और हिंदुस्तान को प्राथमिकता दी।
अब इसी क्रम को आगे बढ़ाया है सुभासपा यानी सुहलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर ने ।
सिनेमा में भी सुहलदेव
महाराजा सुहलदेव का स्वर्णीम इतिहास साहित्य और सियासत से होते हुए अब सिनेमा तक पहुंच गया है। महाराजा सुहल देव पर लिखी अमरीश त्रिपाठी की पुस्तक ‘ भारत का रक्षक महाराजा सुहलदेव’ बनी फिल्म भी रुपहले पर्दे पर आ रही है। महाराजा सुहलदेव की हिंदू जनमानस में लोकप्रियता का आंदाजा इसी से लगाया जा सकता है इस पुस्तक की अब तक 55 हजार से अधिक प्रतियां बिक चुकी है।