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Holi 2023 : कभी  सैदपुर के चटख रंगों से रंगीन होती थी होली,  आज “बे रंग” है रंगों का शहर

Once upon a time, Holi used to be colorful with the bright colors of Saidpur, today it is a city of colors

फोटो स्रोत : गुगल से

समीर,  सैदपुर  (गाजीपुर )
होली के नजदीक आते ही वो दिन याद आ जाते हैं जब पिचकारी में लाल, पीले, हरे, नीले रंगों को भरकर लोग एक दूसरे के ऊपर छोड़ते थे ।  यह रंग उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद के सैदपुर के बंबई कलर एजेंसी के बने रंग होते थे, जिससे होली में लोगों के कपड़े लाल -पीले हो जाया करते थे, लेकिन आज यही सैदपुर का रंग बदलते परिवेश और सरकारी उपेक्षा के कारण बे रंग सा हो गया है।

पड़ोसी देशों में भी था सैदपुर के बने रंगों का बोलबाला

करीब 50 साल पहले गाजीपुर और उसके आसपास के जिलों में ही नहीं बल्कि पड़ोसी देश नेपाल, तिब्बत, भूटान तक सैदपुर के बने रंगों का बोलबाला था।  इसके अलावा बिहार, बंगाल, आसाम, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब हरियाणा , जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों में भी सैदपुर के मुंबई कलर एजेंसी का बना रंग रंग जाया करता था। इसके अलावा सैदपुर के आस-पास के गांव गांव के गांव के गांव में रहने वाले सैकड़ों  परिवारों की आजीविका भी इन्हीं रंगों की बदौलत चला करती थी, लेकिन दुर्भाग्य से आज बदलते परिवेश कारण यह उद्योग सिमट कर रह गया है।

1960 में शुरू हुआ रंग उद्योग

   सैदपुर के लोगों का  कहना है कि यहां पर रंग उद्योग की शुरुआत की शुरुआत सन 1960 में हुई थी लोगों के मुताबिक शुरुआती दौर में शहर के आप नगर में पंडित बनवारी लाल पांडे ने पांडे ने मुंबई कलर एजेंसी के नाम से रंग उद्योग शुरू किया था। लोगों के मुताबिक इस कारखाने में रंगों में प्रयुक्त किया जाने वाला वाला रसायन मुंबई से मंगवाया जाता था इसलिए इस कारखाने का नाम मुंबई कलर्स एजेंसी रखा गया। उस समय सैदपुर के बने रंगों की खबर देश के छोटे बड़े बड़े बड़े शहरों के अलावा दूसरे मुल्कों में भी ज्यादा थी कहते हैं कि उस जमाने में सैदपुर और और बिहार के के माल गोदाम मुंबई कलर एजेंसी के बने रंगों के कार्टून से एयरटेल होते थे लोगों के मुताबिक होली के सीजन आते ही ही आते ही ही सीजन आते ही ही कलर एजेंसी में रंग बनाने का काम और तेज हो जाता था।

पुड़िया वाला नील भी बनता था सैदपुर में

लोगों के अनुसार कुटीर उद्योग के रूप में मान्यता मिलने के साथ ही कई महिला और पुरुषों को रोजगार मिले पुरुषों और पुरुषों को रोजगार मिले कई महिला और पुरुषों को रोजगार मिले पुरुषों और पुरुषों को रोजगार मिले कई महिला और पुरुषों को रोजगार मिले पुरुषों और पुरुषों को रोजगार मिले इसके साथ ही सहित वर्णों का दायरा बढ़ने लगा रंगो के बढ़ते दायरे के साथी सैदपुर के मलेरिया टोला पश्चिम बाजार मनगढ़ सहित कई मोहल्लों में रंग उद्योग पुष्पित और पल्लवित होने लगा यही नहीं यहां पुड़िया वाला नील भी बनने लगा, जिसकी जबरदस्त मांग थी।

  रंगों से लाल हो उठता था गंगा घाट

लोग कहते हैं कि एक जमाना था जब बंबई रंग एजेंसी में काम करने वाले मजदूर लंच ब्रेक के समय दोपहर में  गंगा स्नान करने जाते थे तो वहां स्नान के दौरान गंगा के विभिन्न घाटों का पानी कई किलोमीटर तक रंगीन हो जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ सिंथेटिक रंगों ने कृत्रिम  रंगों का स्थान ले लिया,  जिसकी वजह से सैदपुर  का रंग उद्योग आज मरणासन्न स्थिति में अपना दिन गिन रहा है रहा है।   हालांकि रंगों का पर्व होली के नजदीक आते ही आते ही यहां का बे रंग हो चुका रंग उद्योग एक बार फिर से से अपने रंगीन छटा बिखेरने लगता है।

 रंग उद्यमियों को मलाल,  सरकार नहीं दे रही प्रोत्साहन

 दम तोड़ते सैदपुर के रंग उद्योग में प्राण फूंकने की कोशिश कर रहे यहां के रंग कारोबारियों का कहना है कि सरकार रंग उद्योग को को प्रोत्साहित नहीं कर रही है।  उनका कहना है कि रंग उद्योग का बंद होना ही यहां के श्रमिकों के पलायन का बड़ा कारण है ।  उद्यमियों का कहना है कि  संसाधनों और प्रोत्साहन के अभाव में  करीब 60 सालों तक  अपनी छटा बिखेरने वाला रंग उद्योग अब  दम तोड़ने की कगार पर  आ गया है।   उद्यमियों का कहना है कि किसी जमाने में इत्र के रूप में  अपनी पहचान बना चुके गाजीपुर  और रंगों के लिए जाना जाने वाला सैदपुर अब अपनी  पहचान  खोता जा रहा है।  सरकार को चाहिए कि  रंग उद्योग को जीवित करने के लिए कोई आवश्यक कदम उठाए ।
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