
Ghazipur News, (UP) । आशमान से बातें करते इस शिवालय का शिखर और वक्त से थपेड़ों से काली पड़ चुकी इसकी दरकती ईंटे इस ‘मंदिर’ की भव्यता की कहानी सुना रही है। लेकिन, इसका दुर्भाग्य यह है कि मंदिर में शिवलिंग प्रतिष्ठापना होने से पहले इसपर शापित होने का ‘कलंक’ लग गया। लखौरी ईंटों से निर्मित यह चतुष्कोणीय उत्तर प्रदेश के गाजीपुर (Ghazipur) जिले के मोहम्मदाबाद तहसील के थानाक्षेत्र करीमुद्दीनपुर के गांव बद्दोपुर चकिया में स्थित है। कहा जाता है कि रात के समय इस ‘मंदिर’ डरवानी आवाजें आती हैं। इसलिए रात के समय इस तरफ कोई आता जाता नहीं है।
कुंडेसर के जमींदार ने करवाया था निर्माण
शापित ‘मंदिर’ के संबंध में गांव बद्दोपुर चकिया के लोगों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण करीब सौ साल से भी अधिक समय पहले कुंडेसर के जमींदार ने करवाया था। ग्रामीणों के अनुसार तब अंग्रेजों का जमाना था। उस समय बद्दोपुर चकिया का इलाका कुंडेर के बबुआन की जागीर थी और वह इस क्षेत्र के जमींदार थे। इस पूरे इलाके की मालगुजारी कुंडेसर के बबुआन और उनके कारिंदे वसूल करते थे। यहीं पास में बद्दोपुर गांव में उनकी छावनी थी, जहां से बबुआन के कारिंदरे इस क्षेत्र की देख रेख करते थे और उनकी सेना की छोटी टुकड़ी भी इसी छावनी में रहती थी।
इस तरह शुरू हुआ था मंदिर का निर्माण
नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर गांव के लोगों ने बताया कुंडेसर के बबुवान ने मन्नत मान रखी थी कि उनके घरे बेटा होगा तो वह शिव मंदिर का निर्माण करवाएंगे। भगवान ने सकी सुनी और उनके घर बेटा पैदा हुआ। घर में संतान पैदा होने की खुशी में उन्होंने बद्दोपुर चकियां गांव में ( जो उनकी जागीर का हिस्सा था) में शिव मंदिर का निर्माण शुरू करवाया। कहा जाता है सबसे पहले उन्होंने तालाब और कुआं खोदवाया और उसके चारों तरफ आम के पेड़ लगवाए। इसी तालाब के एक तरफ उत्तर दिशा में शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवाया।
65 से 70 फुट ऊंचा है मंदिर
चकियां निवासी जगत तिवारी ने thejarokha.con को बताया कि यह मंदरि अपने आधार यानी चबूरे से करीब 65 से 70 फुट ऊंचा है । उन्होंने कहा कि आज हमारी उम्र 80 के करीब होने वाली है। जब हम लोगो अपने दादा और पिता जी के साथ तालब में नहाने आते थे उस समय इस मंदिर के चारो तरफ पत्थर का एक चौड़ा चूबतारा होता था और उस चूबतरे पर चढ़ने के लिए मंदिर के चारों तरफ सीढ़ियां बनी होती थीं। इसमी ऊंचाई करबी पांच से छह फुट थी। लेकिन समय के लंबे अंतराल में चबूरता नष्ट हो चुका है और पूरी तरह से मिट्टी से ढंक चुका है। इसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं । तब मंदिर के चारों तरफ जंगल और झाड़ियां थी। मंदिर के बाहर शिवलिंग स्थापित था, लेकि मंदिर में कोई नहीं जाता था।
लखौरी ईंटो से बना है मंदिर, दरकती दिवारें सुना रही हैं भव्यता की कहानी
यह मंदिर पूरी तरह से लखौरी ईंटों से बना है। मंदिर के निर्माण में चूना मसाले का प्रयोग किया गया। वक्त के थपेड़ों को सहते हुए यह इस मंदिर की ईंटे बेशक काली हो चुकी हैं, लेकिन इसकी भव्यता की कहानी आज भी सुना रही हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पूरब दिशा में पत्थरों नक्काशीदार तोरण से निर्मित एक छोटा सा दरवाजा बना है। मंदिर की भीतरी दिवारों में चूना मसाला से प्लास्टर कर उसपर देवी देवताओं की आकृतियां उकेरी गई थी है जो अब धुंधली पढ़ चुकी हैं और प्लास्टर में दरारें आने के साथ गर्भगृह में कूड़ाकरकट जमा हो रखा है। जो इसके शापित होने का प्रमाण दे रहा है।
…. और हो गया शापित
ग्रामीणों के अनुसार मंदिर में शिवलिंग के प्राण प्रतिष्ठापना की तैयारी चल रही थी। यज्ञादि धार्मिक अनुष्ठान शुरू हुए जो कई दिनों तक चलते रहे। प्राण प्रतिष्ठापना के लिए धार्मिक विधिविधान से शिवलिंग लाया गया। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिष्ठापित होने वाला था कि कुंडेर के बबुआन के बेटे का निधन हो गया, जिसका जन्म मन्नतों के बाद हुआ था। इसके बाद शिवलिंग प्राणपतिष्ठापना रुक गया और मंदिर पर शापित होने का ‘कलंक’ लग गया। और शिवलिंग आज भी वहीं है, जहां सदियों पहले था।
रात को आती हैं डरानी आवाजें
गांव के कुछ लोगों का कहना है कि इस मंदिर से आज भी रात को डरावनी आवाजें आती हैं। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि उनके पुरखे यह बात बताते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। करीब 30-32 साल पहले इस वीरान पड़े इस मंदिर कुछ बनवासी रहते थे। अब दिनभर यहां चहल पहल रही है। ग्रामीणों ने कहा कि हो सकता है पुराने जमाने डरावनी आवाजें आती रहीं हों लेकिन अब ऐसा नहीं है।